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Nalanda एसकेएमसीएच के ब्लड बैंक में खून नहीं, सांसत में जान

अगर शरीर में खून की कमी हो जाये तो घेर सकती हैं यह बड़ी बीमारियां,जाने कैसे करें कंट्रोल 

बिहार न्यूज़ डेस्क एसकेएमसीएच के ब्लड बैंक में खून की कमी हो गई है. यहां सिर्फ 115 यूनिट खून ही बचा है. खून की किल्लत हो जाने से मरीजों की जान सांसत में अटक गई है. एसकेएमसीएच से जुड़े कर्मियों ने बताया कि रक्तदान नहीं होने से एसकेएमसीएच ब्लड बैंक में खून की कमी हो गई है. ब्लड बैंक में खून की कमी से एईएस पीड़ित बच्चों को भी परेशानी हो सकती है. जिन एईएस पीड़ितों में कुपोषण के लक्षण होते हैं, उन्हें पीकू में खून चढ़ाया जाता है.

एसकेएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ सतीश कुमार सिंह ने बताया कि रक्तदान कराने के लिए कोशिश हो रही है. ब्लड बैंक में आने वाले मरीजों को परेशानी नहीं होने दी जा रही है.

थैलेसीमिया के मरीज संकट में एसकएमसीएच में खून की कमी से थैलेसीमिया के मरीज संकट में हैं. अस्पताल में 0 से अधिक थैलेसीमिया के मरीज निबंधित हैं. यह मरीज पूरे उत्तर बिहार के हैं. थैलेसमिया मरीजों को महीने में दो बार खून की जरूरत होती है. खून की किल्लत होने से इनको भी खून मिलने में परेशानी हो रही है. मरीजों के परिजन किसी तरह डोनर का इंतजाम कर अपने बच्चों को खून चढ़वा रहे हैं.

हर महीने 700 यूनिट खून की जरूरत एसकेएमसीएच में हर महीने 700 यूनिट खून की जरूरत होती है. एसकेएमसीएच में थैलेसीमिया के मरीजों के लिए हर महीने 250 यूनिट खून की जरूरत होती है. वहीं, कैंसर मरीजों के लिए 150 यूनिट, प्रसव के दौरान एनेमिया से ग्रसित महिलाओं के लिए 200 यूनिट खून ब्लड बैंक से जाता है.

इसके साथ पीकू में हर महीने 150 यूनिट खून भेजा जाता है. एईएस के समय पीकू में खून भेजने की मात्रा  फीसदी बढ़ जाती है.

सदर अस्पताल में भी नहीं है खून

सदर अस्पताल में भी खून की कमी है. अस्पताल के ब्लड बैंक में सिर्फ दो यूनिट ही खून बचा है. सरकारी अस्पतालों में खून नहीं होने से मरीज निजी पर निर्भर हो रहे हैं. शहर के अस्पताल में  निजी ब्लड बैंक हैं. निजी ब्लड बैंक से खून लेने पर मरीजों को डोनर के साथ पैसे का भुगतान भी करना पड़ता है.

 

नालंदा  न्यूज़ डेस्क

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