
बिहार न्यूज़ डेस्क लक्ष्य तय कर दिया गया है. इस साल करीब 46 हजार 800 स्वायल हेल्थ कार्ड बनाये जाएंगे. इसके लिए किसानों के खेतों से 15 हजार 800 मिट्टी के नमूने लिये जाएंगे. विडंबना यह कि नये वित्तीय वर्ष का डेढ़ माह गुजर चुका है. लेकिन, अबतक न एप चालू हुआ है और न ही कर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया है. नतीजा, सैंपल जमा करने की प्रक्रिया भी अटकी हुई है.
किसान सलाहकार, किसान समन्वयक, बीटीएम (प्रखंड तकनीकी प्रबंधक) और एटीएम (सहायक तकनीकी प्रबंधक) को चयनित पंचायत और गांवों से मिट्टी के नमूने इकट्ठा करना है. इसी के आधार ग्रिड के दायरे में आने वाले किसानों को मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड बनाना है. अमूमन एक ग्रिड से कम से कम तीन तो अधिकतम पांच किसानों को कार्ड मुहैया कराना है. इस बार नया एप लॉन्च किया गया है. खासियत यह कि किसान का मोबाइल नंबर डालने के बाद लिंक उन्हें मिलेगा. इससे वे कार्ड में दर्ज सभी जानकारियों से ऑनलाइन अवगत हो जाएंगे. एप पर डाटा लोड करने के लिए कर्मियों को प्रशिक्षित किया जाना है. लेकिन, अबतक शिड्यूल जारी नहीं हुआ है. समस्या यह भी कि नालंदा में साढ़े तीन लाख से ज्यादा किसान हैं.
5 हजार कार्ड बनाना अब भी बाकी पिछले साल 13 हजार सैंपल की जांच कर करीब 39 हजार स्वायल हेल्थ कार्ड बनाने थे. अबतक करीब 35 हजार कार्ड बनाकर बांटे गये हैं. जबकि, शेष नमूनों की जांच तो कर ली गयी है. लेकिन, कार्ड नहीं बना है. इसके कारण 16 गांवों के किसानों को कार्ड नहीं मिला है. मिट्टी जांच घर के अधिकारी का कहना है कि जल्द ही कार्ड बनाकर किसानों को मुहैया करा दिया जाएगा. जिन गांवों से पिछले साल नमूना लिया गया था, वहां से इस साल नहीं लिया जाएगा. कारण, कार्ड की वैलिडिटी तीन साल की रहती है.
12 की जगह 8 पारामीटर की ही होती है जांच व्यवस्था की खामियां ऐसी कि 12 में से आठ पारामीटर की ही जांच जिला जांच प्रयोगशाला में होती है. एएएस(ऑटोमेटिक ऑब्जरपशन स्पेक्ट्रोमीटर) मशीन कई साल से खराब है. चार सूक्ष्म पोषक तत्वों (जिंक, आयरन, मैगनीज व कॉपर) की जांच नहीं हो रही है.
जुगाड़ व्यवस्था के तहत पटना से जलंत मिट्टी लैब (बस) आती है तो इसकी जांच होती है. उसके बाद कार्ड तैयार किया जाता है.
नालंदा न्यूज़ डेस्क