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Nalnda महिला चिकित्सकों की काफी कमी, लोगों को इलाज में परेशानी, मेडिकल कॉलेज में 500 बेड, महज पांच महिला डॉक्टर के भरोसे है इलाज
 

रेवाड़ी :  कोरोना महामारी दौर के बीच नई आफत बनने वाली ब्लैक फंगस बीमार का लोगों में खौफ बढ़ता जा रहा है। लोग आंखों में मामूली दिक्कत होने पर सीधे पीजीआई पहुंच रहे हैं। चिकित्सकों से सीधा सवाल कर रहे हैं कि कही उन्हें ब्लैक फंगस तो नहीं हुआ है।  दूसरी ओर पीजीआई में ऐसे लोगों की बढ़ रही संख्या पर ईएनटी वार्ड के चिकित्सकों पर वर्क लोड बढ़ गया है। दूसरी ओर प्रशासन ने भी ब्लैक फंगस को अधिसूचित होने के बाद इस बीमारी की जिले में समीक्षा के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया है।  इस कमेटी में सिविल सर्जन की अध्यक्षता में इंटरनल मेडिसिन, ऑफथेलमॉलॉजी, ईएनटी एवं एपेडेमियोलॉजिस्ट इस समिति के सदस्य शामिल हैं। इस समिति द्वारा सरकार द्वारा जारी अधिसूचना की सख्ती से समीक्षा की जायेगी। यदि अधिसूचना का उल्लंघन सिद्ध होता है तो सिविल सर्जन द्वारा ऐसे व्यक्ति, संस्था या संगठन को नोटिस दिया जायेगा। इसके बाद उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।  स्टेरॉयड साबित हो रहे कारगर  बुधवार को ईएनटी विभाग में मरीज ब्लैक फंगस का संदेह जताकर इलाज कराने के लिए पहुंचते रहे। ईएनटी वार्ड के बेड अब ब्लैक फंगस की मरीजों की संख्या से फुल होने की कगार में पहुंच गए हैं। इधर, अब सामान्य लोग भी आंख में जरा सी दिक्कत महसूस होते ही फंगल इंफेक्शन की आशंका से ग्रस्त होकर नेत्र रोग विभाग में चिकित्सीय परामर्श के लिए पहुंच रहे हैं।


बिहार न्यूज़ डेस्क स्वास्थ्य सेवाओं पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाने के बाद भी कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है. पावापुरी भगवान महावीर आयुर्विज्ञान संस्थान में चिकित्सीय सुविधाओं व सेवाओं की स्थिति ठीक नहीं है. कॉलेज के स्त्रत्त्ी रोग विभाग में महिला चिकित्सकों की काफी कमी है. इसके चलते इलाज कराने आए व गर्भवती महिलाओं को परेशानी हो रही है.
500 बेड वाले मेडिकल कॉलेज में सिर्फ पांच महिला डॉक्टर हैं. रोजाना ओपीडी में 200 से अधिक महिला रोगी इलाज के लिए आ रहीं हैं. यहां इनडोर व इमरजेंसी में भी औसतन 15 महिला रोगी रोज आती हैं. साथ ही महिला डॉक्टरों के कंधों पर यहां पढ़ रहे 480 मेडिकल छात्रों को पढ़ाने की भी जिम्मेदारी है.

एक भी महिला प्रोफेसर नहीं स्त्रत्त्ी रोग विभाग की स्थिति यह है कि यहां एक भी महिला प्रोफेसर नहीं हैं. दो असिस्टेंट प्रोफेसर के अलावा तीन एसआर यानी सीनियर रेजिडेंट कार्यरत हैं. जूनियर रेजिडेंट यानी जेआर में एक भी लेडी डॉक्टर नहीं हैं. इस कारण यहां न केवल इलाज बल्कि मेडिकल छात्रों की पढ़ाई भी सही से नहीं हो पा रही है.  इलाज कराने आयी वैदेही कुमारी, रानी कुमारी व अन्य ने बताया कि महिला डॉक्टरों की कमी से परेशानी हो रही है. काफी समय तक इंतजार करना पड़ा.
महिला डॉक्टरों की कमी है. इस कारण मेडिकल कॉलेज के साथ अस्पताल का संचालन करने में परेशानी होती है. इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग को जानकारी दी गयी है. इसके लिए प्रयास किया जा रहा है.
-डॉ. पीके चौधरी, प्राचार्य , मेडिकल कॉलेज
एनएमसी के मुताबिक पदों की संख्या भी नहीं
मेडिकल कॉलेज से मिली जानकारी के मुताबिक यहां आठ पद सृजित हैं. लेकिन, केवल पांच डॉक्टर कार्यरत हैं. एनएमसी की गाइडलाइन के मुताबिक यहां पद भी नहीं सृजित किया गया है. यहां काफी लोग इलाज करने के लिए रोजाना पहुंचते हैं. इसकी सूचना विभाग को भी दी गयी है. बावजूद अब तक किसी तरह की उल्लेखनीय कार्रवाई नहीं हुई है. जबकि, यहां औसतन छह प्रसव रोजाना होते हैं.

नालंदा  न्यूज़ डेस्क
 

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