Nainital पहाड पर बारिश ना होने से जल रही धरती, 30 हजार क्विंटल आलू की फसल पर संकट
नैनीताल न्यूज डेस्क।। नैनीताल, चंपावत और बागेश्वर। कुमाऊं के इन तीन जिलों में बड़ी मात्रा में आलू का उत्पादन होता है. जून से सितंबर तक प्रतिदिन 250 क्विंटल आलू हलद्वानी बाजार में बिकता है।
चार महीने में औसतन 30,500 क्विंटल आलू बाजार में पहुंचता है, जिससे किसानों को अच्छी आमदनी होती है, लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई है. बारिश की कमी से पहाड़ों में सूखे के हालात पैदा हो गए हैं. आलू जमीन में जल रहे हैं और फसल खतरे में है. किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं.
आलू की खेती किसानों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
पहाड़ में आलू की खेती किसानों की आर्थिकी की रीढ़ है। विशेषकर नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर, धारी, घनस्यू, पदमपुरी, भीमताल आदि क्षेत्रों में आलू प्रचुर मात्रा में पैदा होता है। जैसे ही पहाड़ी आलू बाजार में पहुंचता है, स्थानीय आलू की कीमतें गिर जाती हैं। पहाड़ी आलू की मांग लोगों की जुबान पर है लेकिन इस बार बारिश न होने से किसान चिंतित हैं।
किसानों का कहना है कि इस समय आलू की फसल बाजार में पहुंचने वाली है. इसलिए बारिश की सख्त जरूरत है. बारिश की कमी के कारण आलू बड़े आकार का नहीं हो पाता है. कीड़ों से संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाएगा। मिट्टी की गर्मी से आलू के सड़ने का भी खतरा रहता है. खेतों में लगे पौधों की पत्तियां सूखने लगी हैं. किसानों का कहना है कि एक बार तो फसल को कीट से बचाया जा सकता है, लेकिन बारिश नहीं हुई तो फसल बर्बाद हो जायेगी.
पहाड़ी आलू की मांग पूरे भारत में है
पोटैटो फ्रूट एजेंट्स एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष केशवदत्त पलड़िया का कहना है कि पहाड़ी आलू की मांग पूरे भारत में है। मोटा आलू दिल्ली जाता है. मध्यम आकार का आलू कोलकाता, आगरा, गुजरात और अन्य राज्यों तक पहुंचता है। उनका कहना है कि पहाड़ी आलू देसी आलू की तुलना में ज्यादा रसदार होते हैं और जल्दी पक जाते हैं।
आलू के एक पौधे को 10 लीटर पानी की जरूरत होती है
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, प्रत्येक आलू के पौधे को विकसित होने के लिए लगभग 10 लीटर या 2.5 यूएस गैलन से थोड़ा अधिक की आवश्यकता होती है। पानी आलू की मिट्टी में नमी बनाये रखता है। अच्छी उपज पाने के लिए आलू की फसल को 7-10 पानी की आवश्यकता होती है। फसल तैयार होने से पहले पानी बहुत जरूरी है.
उत्तराखंड न्यूज डेस्क।।