
बिहार न्यूज़ डेस्क पन्द्रह साल पहले प्लानिंग हुई और जरूरत महसूस होने के आठ साल बाद डीपीआर बन रही. हम बात कर रहे नगर निगम क्षेत्र में बच्चों बुजुर्गों के लिए जरूरी पार्क की योजना का.
इसे नगर निगम के काम करने का तरीका समझें या निगम में योजनाओं का हस्र. स्मार्ट सिटी सहित कई योजनाओं पर काम चल रहा है लेकिन पार्क की योजना इतने दिनों तक फाइलों में रही. अब जाकर शहर में तीन पार्क के लिए डीपीआर बना है और 6 करोड़ की लागत से तीनों जगहों पर काम कराने की स्वीकृति मिली है. यह योजना अम्रूत मिशन के तहत केन्द्रीय शहरी एवं आवासन मंत्रालय से स्वीकृत हुई है. लिहाजा उम्मीद है कि अब इसपर जल्द ही काम शुरू हो जाएगा.
शहरी जीवन में पार्क स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है. लेकिन विडंबना है कि शहर में सैंडिस कंपाउंड और लाजपत पार्क को छोड़कर कोई ऐसी जगह नहीं जहां शुद्ध आवो हवा के बीच लोग फुर्सत के दो पल गूजार सकें. सुंदर प्राकृतिक नजारे को देख आंखों को सुकून मिले. नगर निगम के पिछले बोर्ड की कुछ बैठकों में जब केन्द्र और राज्य से शहर के सौंदर्यीकरण का मुद्दा उठा तो उसमें रश्मी तौर पर न केवल पार्कों के जीर्णोद्धार की बात हुई बल्कि दक्षिणी क्षेत्र सहित कुछ इलाकों में निगम की खाली जमीन को घेर कर पार्क के रूप में विकसित करने की भी बात हुई. लेकिन बूढ़ानाथ मंदिर के बगल में गंगा किनारे पार्क के नाम एक भूखंड की घेराबंदी के अलावा कुछ नहीं हुआ. सैंडिस की सूरत जरूर बदली लेकिन अभी और कोई पार्क नहीं बना. भैरवा तालाब का सौंदर्यीकरण चल रहा है. उम्मीद है कि पश्चिमी हिस्से में भैरवा तालाब पार्क की जरूरत को पूरा करेगा. 15 साल पहले राज्य स्तर से बनाये गए एक मास्टर प्लान के अनुसार 15 हजार शहरी आबादी पर एक पार्क की जरूरत बतायी गई थी. लेकिन यहां लगभग 5 लाख की आबादी है और ले देकर सैंडिस कंपाउंड ही है जहां लोग खुले में सांस ले सकते हैं. मॉर्निंग वॉकर डा. मणिभूषण और डा. प्रसून बताते हैं कि दिनों दिन प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है. शहर में जितने पार्क होंगे, जितनी हरियाली होगी उतना अच्छा होगा. एक सैंडिस कंपाउंड की वजह से इतना फायदा होता है. अगर अलग- अलग मोहल्लों में पार्क हो तो जो सैंडिस, लाजपत पार्क नहीं आ सकते हैं उन्हें भी फायदा होगा.
मुंगेर न्यूज़ डेस्क