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Meerut  गढ़वाल टीले पर अस्तित्व का संकट, कई दशक से निरंतर पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार रहा हैकस्बा स्थित टीला

Meerut  गढ़वाल टीले पर अस्तित्व का संकट, कई दशक से निरंतर पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार रहा हैकस्बा स्थित टीला
 

उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क   कई दशक से निरंतर पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार कस्बा का गढ़वाल टीला आज भी लोगों को अचंभित करता है. तीन सभ्यताओं के रहस्य अपने गर्भ में छिपाए यह टीला पुरातत्त्व विज्ञानियों की बाट जोह रहा है, लेकिन विभागीय उपेक्षा के चलते टीले का अस्तित्व खतरे में है.
सौंख-गोवर्धन मार्ग पर कस्बा की सीमा रेखा के निकट स्थित यह टीला पुरातत्विक की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. इसे लेकर सबसे पहले शासन की नजर 1965 में पड़ी. तब इस टीले के महत्व को समझते हुए शासन की मंशा के अनुरूप पुरातत्त्व विभाग ने जर्मनी वैज्ञानिक हरबर्ट हर्टल के निर्देशन में यहां खुदाई कराई. बताया जाता है कि यह खुदाई और खोज का काम लगातार 6 वर्ष सन 1971 तक चला. उस दौरान टीले से लाल पत्थर से निर्मित भगवान बुद्ध की आदमकद प्रतिमाएं मिली जो आज भी राजकीय संग्रहालय मथुरा की शोभा बढ़ा रही है. प्राचीन सभ्यता की गवाही देते मृतभाड़ मिले जो संग्रहालय में संरक्षित किए गए.
यहां पर लगाए गए विभागीय बोर्ड बताते हैं कि इस टीले से मौर्य, शुंग तथा कुषाण कालीन सभ्यताओं के अवशेष यहां से प्राप्त हुए हैं. टीले पर खुदाई के दौरान मिले प्राचीन स्नानागार और कुएं तथा एक वर्ग फीट की पतली सी ईंटें बरबस ही प्राचीन सभ्यता से यहां आने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, लेकिन विभागीय उपेक्षा के चलते यह टीला अब अपने अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहा है. इसके चारों ओर लगी लोहे के तार की बाड़ तोड़ दी गई है. स्थानीय लोगों के लिए अब यह एक उपेक्षित टीला रह गया है.

पूर्व पीएम की पुत्री कर चुकी हैं अवलोकन
सौंख टीले के पुरातन इतिहास का महत्व इस बात से स्पष्ट होता है कि वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पुत्री डा. उपेंद्र कौर इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय नई दिल्ली के विद्यार्थियों के साथ इस टीले का अवलोकन कर चुकी हैं. तब लोगों को आस बंधी थी कि अब टीले का कायाकल्प हो जाएगा, लेकिन विभागीय उपेक्षा के चलते कुछ भी न हो सका.
सिकुड़ता जा रहा है टीला
कई वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में फैला यह टीला अब निरंतर सिकुड़ता जा रहा है. इसकी जद में लगातर अतिक्रमण जारी है. पक्के आवास तक बन गए हैं. विभागीय उपेक्षा से अतिक्रमणकरियों के हौंसले बुलंद हैं.


मेरठ न्यूज़ डेस्क
 

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