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Mathura  प्रचार कृष्ण भक्तों ने जन-जन तक पहुंचाई रामलीला
 

Mathura  प्रचार कृष्ण भक्तों ने जन-जन तक पहुंचाई रामलीला

उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की लीलाओं का समूचे उत्तर भारत में प्रचार-प्रसार करने और उसे जन-जन तक पहुंचाने में योगीराज श्रीकृष्ण की जन्मभूमि की अहम भूमिका रही है. मथुरा शैली की रामलीला को देश ही नहीं विदेशों में भी सबसे ज्यादा प्रचलित हैं. संवाद, अभिनय और सजीवता के साथ-साथ साहित्य और श्रंगार यहां की रामलीला शैली की सबसे बड़ी खासियत है. 1942 में सबसे पहले मथुरा की रामलीला का मंचन छतरपुर बैजनाथ चतुर्वेदी के परिजनों ने किया था. वर्तमान में दो दर्जन से अधिक मंडलियां रामलीला मंचन के लिए यहां से रवाना होने जा रही हैं.
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम लीला की मंचीय प्रस्तुतियों को मथुरा से बाहर ले जाने में स्व. गोविंद चतुर्वेदी, स्व. गिर्राज दत्त, स्व. गंगे प्रसाद चतुर्वेदी, मथुरेश दत्त व्यास की अहम भूमिका रही है. वर्तमान में बैजनाथ चतुर्वेदी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. कोरोना काल को छोड़ दें तो वे लगातार 59 वर्ष से मुंबई में चौपाटी पर रामलीला का मंचन करते चले आ रहे हैं. हिन्दुस्तान समाचार-पत्र से बाचतीच में बैजनाथ चतुर्वेदी ने बताया कि तब रामलीला में इतनी तड़क-भड़क और आधुनिकता नहीं होती थी, लेकिन बदलते दौर में इसका समावेश धीरे-धीरे होता जा रहा है. मथुरा शैली की रामलीला की खासियत उसकी मर्यादा है. मर्यादा के अनुरूप ही लीला का मंचन किया जाता है. पात्रों के संवाद-अभिनय और साहित्य का पुट उसे सजीव बनाता है. यही वजह है कि रामलीला की मथुरा शैली उत्तर भारत में सबसे ज्यादा पसंद की जाती है.

मथुरा की रामलीला में स्वयं राम की भूमिका निभा चुके बैजनाथ चतुर्वेदी बताते हैं कि रामलीला का मंचन उनके लिए ही नहीं मंचन से जुड़े प्रत्येक कलाकार के लिए भगवान राम की सेवा है. उनकी मंडली अनंत रामलीला मंडल निरंतर रामलीला का मंचन कर रही है. इसी तरह मथुरानाथ व्यास भी 55 वर्षों से रामलीला का मंचन कर रहे हैं. रामलीला को जन-जन तक पहुंचाने में दत्त परिवार की भी अलग पहचान है. इस परिवार के मथुरेश दत्त व्यास, बैकुंठ नाथ, महेश दत्त व्यास का रामलीला को जन-जन तक पहुंचाने में अहम योगदान रहा है. कमल चतुर्वेदी व श्यामसुंदर चतुर्वेदी भी रामलीला को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं. रामलीला मंचन से जुड़े कलाकार और मंडली संचालक रामलीला मंचन से जुड़े कलाकारों की उपेक्षा से मायूस हैं. उनका कहना है कि कोरोना संक्रमण काल में दो वर्ष तक रामलीला का मंचन नहीं हो सका. ऐसे में सरकार ने हर वर्ग की मदद की, लेकिन रामलीला के कलाकारों की सुध नहीं ली. उन्होंने शासन से कलाकारों के लिए पेंशन जैसी योजना लाने की मांग भी की है, ताकि जीवन यापन करने में उनको किसी तरह की दिक्कत न हो.
हालांकि कोरोना संक्रमण काल के बाद यह पहला मौका है, जबकि रामलीला मंडलियों की बुकिंग हो चुकी है. देश के विभिन्न जनपदों में यहां के कलाकार रामलीला मंचन की तैयारी में जुटे हुए हैं. रोजाना पूर्वाभ्यास चल रहा है. ये मंडलियां बहुत जल्द ही रामलीला मंचन के लिए यहां से रवाना होने जा रही हैं. यही वजह है कि रामलीला मंचन से जुड़े कलाकारों में भारी उत्साह है.
रामलीला मंचन हमारा कारोबार नहीं. भगवान श्रीराम की सेवा है. इसी सेवाभाव से मथुरा के कलाकार खासकर चतुर्वेद समाज के लोग रामलीला मंचन के लिए घरों से निकलते हैं. रामलीला मंचन के दौरान मर्यादा का विशेष ख्याल रखा जाता है. यहां तक की राम, जानकी, लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न, हनुमान जी के स्वरूपों को इन्हीं नामों से पुकारा जाता है. देशभर में रामलीला की मथुरा शैली सबसे ज्यादा प्रचलित है.
बैजनाथ चतुर्वेदी, संचालक अनंत रामलीला मंडल, मथुरा.


मथुरा न्यूज़ डेस्क
 

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