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Lucknow  नसों पर हमला करता है शिंगल्स का वायरस

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उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क  शिंगल्स या हर्पीज जॉस्टर वायरस से होने वाला ऐसा संक्रमण है, जिसके होने का खतरा अधिकांश लोगों को होता है. बावजूद इसके बारे में लोगों की जानकारी कम मिलती है.

हर्पीज वायरस के दो प्रकार होते हैं- टाइप 1 में यह चेहरे के आसपास या शरीर के अन्य हिस्सों पर होता है और टाइप 2 हर्पीज जननांगों के आसपास होता है. अगर शरीर में एक बार इस वायरस प्रवेश हो जाए तो यह स्पाइनल नसों में लंबे समय तक सुप्त अवस्था में भी रह सकता है. ऐसे में जब शरीर कमजोर होता है तो वहां से दोबारा सक्रिय हो जाता है और शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने लगता है. यह वायरस नसों के माध्यम से आगे बढ़ता है, इसलिए यह हमेशा शरीर के किसी एक हिस्से यानी केवल दाएं या बाएं भाग में फैलता है. जब यह पहली बार होता है, तो इसे प्राइमरी और दूसरी बार होने वाले हर्पीज को सेकंडरी एपिसोड कहा जाता है.

क्या है वजह

यह संक्रमण मुख्य रूप से वैरिजोला जॉस्टर वायरस के कारण होता है. जिन लोगों को पहले से चिकन पॉक्स हो चुका होता है, उनकी नसों में यह वायरस सुप्त अवस्था में चला जाता है. जो कभी बाद में सक्रिय हो सकता है और अचानक त्वचा पर दानों के रूप में नजर आने लगता है. इम्यून सिस्टम कमजोर होने पर इसकी आशंका अधिक होती है. अगर किसी ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराया हो या कैंसर, टीबी, डायबीटिज की दवाओं के प्रभाव से भी यह हो सकता है.

कमजोरी के कारण बुजुर्गों में इसकी आशंका अधिक होती है. साफ-सफाई का अभाव और भीड़-भाड़ का ध्यान न रखना भी हर्पीज की आशंका बढ़ाता है. स्वीमिंग पूल, जिम, हॉस्पिटल, सैलून या ब्यूटी पार्लर जैसी जगहों पर संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर दूसरे व्यक्ति इसके संक्रमण का शिकार हो सकते हैं.

टाइप 2 हर्पीज चूंकि सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज की श्रेणी में आता है. असुरक्षित यौन संबंध को इसका प्रमुख कारण माना जाता है. इसका मरीज की मनोदशा पर भी बुरा असर पड़ता है, वह संकोचवश दूसरों को यह बता नहीं पाता. उपचार के बाद भी दोबारा होने की चिंता सताती है. इस कारण तनाव, बेचैनी व डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी परेशान करती हैं. कुछ लोगों में दर्द लंबे समय तक बना रहता है.

 

 

लखनऊ न्यूज़ डेस्क

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