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Lucknow  शहर में बनेंगे 45 किमी तक मार करने वाली तोप के गोले

कारगिल युद्ध के 22 साल पूरे होने पर भारत देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले जवानों को याद कर रहा है। 22 साल पहले भारतीय सेना ने अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी सेना को कुचल दिया था. तो आइए जानते हैं उन हथियारों के बारे में जिनके जरिए भारत ने यह युद्ध जीता था।  पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर: पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर ने पाकिस्तानी सेना की पैदल सेना को भारी नुकसान पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। DRDO ने इस ट्रक माउंटेड सिस्टम को विकसित किया है।  इंसास राइफल: कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के जवान इंसास राइफलों से लैस थे। इस राइफल के जरिए पाकिस्तानी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया जाता था. यह मेड इन इंडिया राइफल ऑर्डनेंस फैक्ट्री में बनाई गई थी।  कोरल गुस्ताव रॉकेट लॉन्चर: कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के पास कोरल गुस्ताव रॉकेट लॉन्चर था। इसके जरिए पाकिस्तानी सेना के बंकरों को नष्ट कर दिया गया. इस रॉकेट लांचर का निर्माण आयुध निर्माणी बोर्ड द्वारा किया गया था। इसे स्वीडन से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से विकसित किया गया था।  बोफोर्स तोप: कारगिल युद्ध में भारत ने स्वीडन में बनी बोफोर्स तोप के जरिए पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। पाकिस्तानी सैनिक ऊंचाइयों पर छिपे हुए थे, लेकिन इस तोप से उन पर हमला किया गया और उन्हें मार गिराया गया। इसकी रेंज 42 किमी तक है.  SAF कार्बाइन 2A1: कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने SAF कार्बाइन 2A1 हथियार का भी इस्तेमाल किया था। यह गन सब मशीन गन 1ए1 का साइलेंस्ड वर्जन है, जिसके बैरल में साइलेंसर लगा हुआ है। इसका वजन हल्का है, जिसके कारण सैनिक इस हथियार का बखूबी इस्तेमाल करते हैं।  एके-47 राइफल: कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने दुश्मन सैनिकों से लड़ने के लिए एके-47 राइफल का इस्तेमाल किया था। इस हथियार के जरिए भारतीय सैनिकों को ऊंचे इलाकों में भी आगे बढ़ने में काफी मदद मिली.

उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क   रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत के मिशन में आयुध निर्माणियों की भूमिका बढ़ रही है. भारतीय सेना के साथ मिडिल ईस्ट के देशों से हुए रक्षा सौदों के क्रम में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कानपुर में अगले साल से 45 किमी दूरी तक मार करने वाली 155 एमएम तोपों के गोले बनने लगेंगे. अभी 5 से 30 किमी मारक क्षमता वाली तोपों के गोले तैयार होते हैं.

रक्षा मंत्रालय के डीपीएसयू एडब्ल्यूईआईएल की अर्मापुर स्थित ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कानपुर में भारी गोले बनाने के लिए फोर्जिंग प्लांट बनना शुरू हो गया है.

नागपुर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री पर नहीं होगी निर्भरता: अभी तक गोलों की मांग पर ओएफसी की नागपुर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री अंबाझारी पर निर्भरता होती है. ओएफसी का शेल फोर्ज प्लांट 5 एमएम और 5 एमएम की तोपों के गोलों का निर्माण करता है. बोफोर्स तोप 27 से 28 किमी दूरी तक मार करती है. इसके शेल फोर्ज ओएफसी में बनते हैं. एडब्ल्यूईआईएल के अस्थायी कार्यभार अधिकारी संदीप कन्हाई के ओएफसी में नए शेल फोर्ज प्लांट के बेसमेंट का उद्घाटन करने के बाद निर्माण शुरू हो गया है. अफसरों के मुताबिक 2025 में कानपुर का यह आधुनिक प्लांट बन जाएगा.

45 किलो का होता है 155 एमएम गोला : 155 एमएम राउंड के गोले का आकार बहुत बड़ा होता है. इसमें डेटोनेटिंग फ्यूज, प्रोजेक्टाइल, प्रोपेलेंट और प्राइमर जैसे प्रमुख हिस्से होते हैं. हरेक गोला 155 मिमी या 6.1 इंच व्यास का होता है. एक गोले का वजन 45 किलोगाम होता है.

मिडिल ईस्ट से मिले गोलों के ऑर्डर से बढ़ी मांग

यूएआई भारत से 155 एममएम तोप के गोले खरीदता है. ऑर्डिनेंस फैक्ट्री से 2017 व 20 में संयुक्त अरब अमीरात ने 40 हजार और 50 हजार 155 मिमी तोपखाने के गोले खरीदे थे. 86 मिलियन डॉलर का ऑर्डर था. फरवरी में सऊदी अरब ने रियाद डिफेंस एक्सपो में 155 एमएम तोपखाने के गोले की खरीद को 225 मिलियन डॉलर का समझौता किया है.

 

 

लखनऊ न्यूज़ डेस्क

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