उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क मच्छर व मच्छर जनित बीमारियां आज के वैज्ञानिक युग में चुनौती बनी हुई हैं. मच्छर जनित बीमारियों से लोगों को बचाने के लिए हर साल संचारी रोग अभियान चलता है साथ-साथ छिड़काव व फॉगिंग के लिए विशेष पहल होती है, लेकिन इसके बाद भी मच्छरों का डंक नहीं दब रहा है. इसका कारण है कि मच्छर के साथ मलेरिया पैरासाइट के व्यवहार में भी आया बदलाव आया है. अब दवा की तीन गुना खुराक असर कर रही है.
मच्छरों को मारने वाली दवाओं के छिड़काव पर बजट हर साल बढ़ रहा है, लेकिन इनके मच्छर फिर भी बेकाबू हैं. शहर के नाले, ड्रेन, नालियां व खाली प्लाट से मच्छर पनप रहे हैं. नगरपालिका और स्वास्थ्य विभाग मच्छरों के छिड़काव पर आने वाली दवा पर लाखों रुपये खर्च कर रहा है, मगर मच्छरों की दवा, छिड़काव व फॉगिंग पर लाखों खर्च होने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है. फॉगिंग व एंटी लार्वा के छिड़काव को जुलाई में विशेष अभियान भी चलाया जाता है, लेकिन यह अभियान सिर्फ खानापूर्ति तक सीमित रहता है. नगर पालिका ही नहीं नगर पंचायत में भी यही स्थिति है.
दवाओं का भी बढ़ गया है कोर्स
अब प्लाज्मोडियम वाईवेक्स के मरीजों को तीन और फैल्सीपेरम के मरीजों को 14 दिन दवा की खुराक दी जाती है. इसके बाद कहीं जाकर राहत मिल पाती है.
दवाई होने लगे हैं बेसर
धीरे-धीरे पैरासाइट को मारने में दवा बेअसर होने लगी हैं. कोर्स पूरा होने पर भी शरीर में परजीवी मिल रहे हैं.
छिड़काव करने के साथ फॉगिंग कराई जा रही है. बारिश के बाद जल जमाव से मच्छर पनपते हैं. इसलिए सभी ध्यान रखें कि अपने आसपास पानी जमाना होने दें.
- नज्जार अहमद, जिला मलेरिया अधिकारी
लखनऊ न्यूज़ डेस्क