राजस्थान में बैल पालक किसानों को मिलेंगे सालाना 30 हजार रुपए, सरकार ने मांगी लिस्ट
राज्य सरकार ने प्राचीन कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए एक नई योजना की शुरुआत की है। इसके तहत बैलों से खेतों की जुताई कराकर कृषि कार्यों को बढ़ावा दिया जाएगा। आधुनिक समय में जहां ट्रैक्टरों और कृषि यंत्रों का उपयोग बढ़ रहा है, वहीं बैलों का उपयोग खेती में घटता जा रहा है। लेकिन अब सरकार की यह नई योजना छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक बड़ी राहत साबित हो सकती है। इस योजना की घोषणा ग्रीन बजट में की गई है।
बैलों से खेती करने पर मिलेगा 30 हजार रुपए का प्रोत्साहन
इस योजना के तहत बैलों से खेती करने वाले किसानों को सालाना 30 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यह योजना केवल बैलों के संरक्षण का माध्यम नहीं है, बल्कि यह छोटे किसानों के लिए एक आर्थिक संबल साबित होगी। इसके साथ ही यह जैविक खेती को बढ़ावा देने में भी कारगर साबित हो सकती है। इससे ग्रामीण भारत की खेती को एक नया जीवन मिलेगा और पारंपरिक खेती के तरीके को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।
बैलों का संरक्षण और जैविक खेती को बढ़ावा
करीब डेढ़ दशक पहले तक खेतों में जुताई के लिए अधिकांश किसान बैल का उपयोग करते थे, जिससे बैलों का संरक्षण भी किया जाता था और पशुधन में बढ़ोतरी होती थी। लेकिन अब ट्रैक्टरों का प्रचलन बढ़ने के बाद बैलों का उपयोग कम हो गया है। इससे बैलों का संरक्षण भी मुश्किल हो गया है और खेती की लागत भी बढ़ गई है। अब सरकार बैलों के पुनः उपयोग को बढ़ावा देने के लिए यह पहल कर रही है।
निराश्रित बछड़ों का होगा सदुपयोग
किसान अक्सर छोटे बछड़ों को अनुपयोगी होने के कारण निराश्रित छोड़ देते थे, जिससे ये बछड़े सड़कों पर घूमते रहते थे। अब इस योजना से वे बैल बनकर किसानों की मदद कर सकेंगे, जिससे न केवल किसानों को राहत मिलेगी बल्कि गोपालन को भी बढ़ावा मिलेगा।
कृषि अधिकारियों का बयान
गांवों में पहले लगभग हर घर में बैल होते थे, लेकिन अब इनका उपयोग घटने के कारण बैल पालन भी कम हो गया है। अब खेती पूरी तरह से मशीनरी पर आधारित हो चुकी है। कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक बीडी शर्मा के अनुसार, ग्रीन बजट में बैल की जोड़ी रखने वाले किसानों के लिए 30 हजार रुपए सालाना देने की घोषणा की गई है। इस योजना के लिए किसानों की सूची सरकार से मांगी गई है।
मिट्टी की उर्वरक क्षमता में होगा सुधार
बैलों से जुताई करने से न केवल कृषि लागत में कमी आएगी, बल्कि मिट्टी में उर्वरक क्षमता भी बढ़ेगी। यह पर्यावरण के लिए भी लाभकारी साबित होगा। कृषि अधिकारियों का मानना है कि इस योजना से खेती की पारंपरिक पद्धतियों की वापसी होगी और बैल पालन को भी बढ़ावा मिलेगा।
इस पहल के माध्यम से सरकार पारंपरिक खेती को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है, और यह ग्रामीण भारत की खेती के लिए एक नई दिशा हो सकती है।