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Kanpur  फेंके गए नवजातों का ‘पालना’ भी खतरे में, बचा लीजिए इसकी सांसें, मेडिकल कॉलेजों में लग रहे पालने, त्यागे गए नवजात इनमें छोड़कर जा सकते हैं लोग
 

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उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क  झाड़ियों में मिला नवजात, जंगल में फेंके नवजात को कुत्तों ने नोचा या नवजात बच्ची को कुएं में फेंका. ऐसे शीर्षक अक्सर अखबारों में अंदर के पन्नों पर दिख जाते हैं. कहां से आते हैं यह बच्चे? इन्हें कौन और क्यों फेंक जाता है? इनकी तकदीर में मुलायम गद्दे, वॉर्मर, वैक्सीन, नैपकिन और मां का दूध क्यों नहीं होता? इन्हें कैसे बचा सकते हैं? इन्हीं सवालों के जवाब खोजते हुए राजस्थान की संस्था अस्पतालों में ‘फेंकें नहीं, हमें दें’ की भावना के साथ पालने लगा रही है. झांसी, आगरा, गोरखपुर में तो पालने लग गए पर हैलट में फंस गए.

पालना लगाने वाले मां भगवती संस्थान, उदयपुर के संस्थापक योग गुरु देवेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि माता-पिता के त्यागे ऐसे ज्यादातर बच्चों की जिंदगी नहीं बचती. वे भूख, कांटे, धूप-सर्दी या जंगली जानवरों के शिकार हो जाते हैं. ऐसी जिंदगियां बचाने के लिए हम सरकार की अनुमति से पालने लगा रहे हैं. तीन दिन पहले पूरी सहमति के बाद हैलट में भूमि पूजन हुआ. स्त्रत्त्ी रोग एवं प्रसूति विभाग के निकट जीटी रोड साइड में पालना लगाया गया. इसका शुभारंभ होना है पर अब मेडिकल कॉलेज ने कई सवाल उठा दिए हैं. पालना फंस गया है.
उधर मेडिकल कॉलेज को कई शंकाएं हैं. मसलन बच्चा इलाज के बाद कहां जाएगा? कोई न ले गया तो हम कितने बच्चे रख सकेंगे? खराब हालत में मिले बच्चे की मौत पर सवाल उठेंगे. उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा? पालना में कोई मृत बच्चा रख कर हंगामा करने लगे तो क्या करेंगे? पालने की सुरक्षा कौन करेगा? सवाल वाजिब भी हैं. देवेन्द्र कहते हैं-प्रोबेशन अफसर की देखरेख में बाल कल्याण समिति ऐसे बच्चों को पालने व संरक्षण के लिए जिम्मेदार है.


कानपूर न्यूज़ डेस्क
 

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