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राजस्थान के 11 निजी डेंटल कॉलेजों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, वीडियो में देखें 110 करोड़ का जुर्माना, डॉक्टरों को दो साल मुफ्त सेवा की शर्त

राजस्थान के 11 निजी डेंटल कॉलेजों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, वीडियो में देखें 110 करोड़ का जुर्माना, डॉक्टरों को दो साल मुफ्त सेवा की शर्त

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के 11 निजी डेंटल कॉलेजों द्वारा नियमों को दरकिनार कर किए गए फर्जी एडमिशन मामले में कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने इन कॉलेजों पर कुल 110 करोड़ रुपये का भारी जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना शैक्षणिक सत्र 2016-17 के दौरान बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) पाठ्यक्रम में हुए अवैध और अनियमित प्रवेशों को लेकर लगाया गया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर को अपना अहम फैसला सुनाया।

हालांकि, कोर्ट ने मानवीय आधार पर उन छात्रों को बड़ी राहत दी है, जिन्होंने अपना बीडीएस कोर्स पूरा कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन पासआउट डॉक्टर्स की डिग्रियां रद्द नहीं की जाएंगी, लेकिन इसके बदले उनके लिए एक सख्त शर्त रखी गई है। फैसले के अनुसार, इन सभी डॉक्टर्स को शपथ पत्र देकर राजस्थान राज्य में दो वर्षों तक नि:शुल्क सेवा देनी होगी। कोर्ट का मानना है कि इससे एक ओर जहां समाज को लाभ मिलेगा, वहीं दूसरी ओर अवैध तरीके से मिले लाभ की आंशिक भरपाई भी हो सकेगी।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने की। पीठ ने अपने आदेश में साफ कहा कि यह राहत केवल उन्हीं छात्रों के लिए है, जिन्होंने अपना कोर्स सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और डिग्री प्राप्त कर चुके हैं। जो छात्र अभी कोर्स पूरा नहीं कर पाए हैं या जिनके प्रवेश लंबित विवादों में हैं, उन पर यह राहत लागू नहीं होगी।

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि दोषी कॉलेजों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जा सकता। नियमों की अनदेखी कर एडमिशन देना न सिर्फ छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है। इसी को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने प्रत्येक दोषी कॉलेज से 10-10 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूलने के आदेश दिए हैं। कुल मिलाकर 11 कॉलेजों से 110 करोड़ रुपये की वसूली की जाएगी।

यह मामला लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन था। जांच में सामने आया था कि वर्ष 2016-17 में कई निजी डेंटल कॉलेजों ने निर्धारित प्रवेश प्रक्रिया, मेरिट और नियामक संस्थाओं के दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए एडमिशन दिए थे। इसके चलते न केवल योग्य छात्रों के अधिकारों का हनन हुआ, बल्कि मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को शिक्षा जगत में एक कड़ा संदेश माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय निजी शिक्षण संस्थानों के लिए चेतावनी है कि नियमों की अनदेखी करने पर उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। साथ ही, दो साल की नि:शुल्क सेवा की शर्त से ग्रामीण और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को भी मजबूती मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।

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