भूतों को अस्तित्व विज्ञान से भी उपर, वीडियो में देखें जोधपुर के प्राचीन ग्रंथों में दर्ज है भूत-प्रेत और अदृश्य शक्तियों का रहस्यमय संसार
भले ही आधुनिक विज्ञान भूत-प्रेत और अदृश्य शक्तियों जैसी अवधारणाओं को अंधविश्वास की श्रेणी में रखता हो, लेकिन राजस्थान के जोधपुर स्थित राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान (Rajasthan Oriental Research Institute – RORI) में सुरक्षित प्राचीन ग्रंथ और सरकारी अभिलेख एक अलग ही कहानी बयां करते हैं। यहां संग्रहित 12वीं से 18वीं शताब्दी के बीच लिखी गई दुर्लभ पांडुलिपियों में भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिन और अदृश्य शक्तियों से जुड़ी मान्यताओं का विस्तार से उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में न केवल इन शक्तियों के प्रभावों का वर्णन है, बल्कि उनसे बचाव और नियंत्रण की विधियां भी दर्ज हैं।
ये पांडुलिपियां तत्कालीन समाज की सोच, धार्मिक विश्वासों और तांत्रिक-आध्यात्मिक परंपराओं को उजागर करती हैं। उस दौर में जब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का विकास नहीं हुआ था, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बीमारियों, मानसिक विकारों और असामान्य घटनाओं को भूत-प्रेत या दुष्ट शक्तियों का प्रभाव मानते थे। ऐसे में तांत्रिक क्रियाएं, मंत्र-तंत्र और धार्मिक अनुष्ठान ही उनके लिए उपचार का माध्यम थे।
RORI में संरक्षित ‘पीर-नामा’ साहित्य इस विषय में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इन ग्रंथों में भूत, पिशाच, डाकिन और अन्य बाधाओं से मुक्ति पाने के उपायों का विस्तृत वर्णन है। इनमें विशेष मंत्र, ताबीज, यंत्र, धूप-दीप और पूजा विधियों का उल्लेख मिलता है, जिन्हें अपनाकर लोग खुद को या अपने परिवार को इन अदृश्य शक्तियों से सुरक्षित मानते थे। यह साहित्य दर्शाता है कि उस समय आध्यात्मिक आस्था लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा थी।
इतिहासकारों का कहना है कि इन ग्रंथों का महत्व केवल धार्मिक या रहस्यमय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक संदर्भ में भी है। कई पांडुलिपियों में तत्कालीन शासकों द्वारा इन मान्यताओं को मान्यता देने या विशेष परिस्थितियों में तांत्रिकों और साधुओं की सहायता लेने के उल्लेख मिलते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय शासन व्यवस्था भी लोक विश्वासों से पूरी तरह अछूती नहीं थी।
18वीं शताब्दी में जब महामारी, मानसिक रोग और प्राकृतिक आपदाओं के वैज्ञानिक कारणों की जानकारी नहीं थी, तब इन घटनाओं को अलौकिक शक्तियों से जोड़कर देखा जाता था। ऐसे में ‘पीर-नामा’ जैसे ग्रंथ लोगों को मानसिक संबल देने का काम करते थे। इन मान्यताओं के जरिए समाज में भय के साथ-साथ आस्था और अनुशासन भी कायम रहता था।
RORI के विशेषज्ञ मानते हैं कि इन प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन आज के दौर में भी महत्वपूर्ण है। ये हमें यह समझने में मदद करते हैं कि किस तरह अंधविश्वास, आस्था और ज्ञान का मिश्रण समाज को दिशा देता था। साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि विज्ञान के अभाव में लोग किस तरह आध्यात्मिक उपायों के सहारे जीवन की चुनौतियों का सामना करते थे।
आज भले ही विज्ञान ने कई रहस्यों से पर्दा उठा दिया हो, लेकिन जोधपुर के इन प्राचीन ग्रंथों में दर्ज भूत-प्रेत और अदृश्य शक्तियों की कथाएं इतिहास, संस्कृति और लोक विश्वासों की एक अनोखी झलक पेश करती हैं, जो हमें हमारे अतीत से जोड़ती हैं।

