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Jhansi  अब खेतों पर बची तिल की फसल को इल्ली से बचाएं
 

Jhansi  अब खेतों पर बची तिल की फसल को इल्ली से बचाएं


उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क   बीते दिनों हुई लगातार बारिश ने किसानों के खेतों की फसलों को खराब कर दिया था. रही सही कसर अब बुधवार की रात से हुई बारिश ने पूरी कर दी है. कुछ किसानों की तिल फसल अच्छी थी पर अब खराब हो जानी है. इसी तरह बीमारी भी इन पर आक्रमण कर रही है. जिसको लेकर वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए सलाह जारी की है. इससे जिन किसानों की फसल बची है वह और सुरक्षित कर सकेंगे.

रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तिल की फसल को इल्ली के प्रकोप से बचाने की सलाह दी है. कृषि वैज्ञानिक डॉ. विजय कुमार मिश्रा और डॉ. ऊषा ने बताया कि तिल की फसल में पत्ती और फलीभेदक कीट का प्रकोप बुंदेलखण्ड क्षेत्र में बढ़ रहा है इस कीट की इल्ली प्रारंभिक अवस्था में हल्के पीले रंग की तथा बाद में यह हरे कलर की हो जाती है और इनके शरीर के ऊपरी भाग पर काले रंग के धब्बे पाये जाते हैं.
ये इल्लियां 14-17 मिलीमीटर के आकार की होती हैं. जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है. प्रारंभिक अवस्था में इनकी इल्लियां पौधों की ऊपरी पत्तियों को लपेटकर उसके अन्दर पत्तियों को खाती हैं. जब फलियां बनती हैं तो फली में प्रवेश कर बीजों को खा जाती हैं. इसके नियंत्रण के लिये 5 प्रतिशत नीम बीज आर्क अथवा 2 प्रतिशत की दर से नीम तेल का छिड़काव करना चाहिए. डेल्टामेथ्रिन 2.8 ई.सी. की 350 मिलीलीटर दवा या फनबेलरेट 20 ई.सी. की 250 मिलीलीटर दवा अथवा साइपरमेथ्रिन 10 ई.सी. दवा को 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें.


झाँसी  न्यूज़ डेस्क
 

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