राजस्थान के झालावाड़ में स्कूल हादसे पर छात्र ने सुनाई आपबीती, "जब पत्थर गिरे तो टीचर्स नाश्ता कर रहे थे, डांटकर भेज दिया वापस"
झालावाड़ जिले के मनोहर थाना ब्लॉक स्थित पीपलोदी सरकारी स्कूल में शुक्रवार को हुए दर्दनाक हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। स्कूल की छत ढहने से 7 बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई और करीब 27 अन्य घायल हो गए। इस घटना ने न सिर्फ स्कूल प्रशासन बल्कि शिक्षा व्यवस्था की लापरवाही को भी उजागर कर दिया है। अब इस हादसे को लेकर छात्रों की आपबीती सामने आ रही है, जिसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
हादसे के समय स्कूल के कुछ छात्र वहां मौजूद थे, जो अब बता रहे हैं कि हादसे से पहले भी इमारत में कुछ गड़बड़ियां नजर आ रही थीं। एक छात्र के अनुसार, जब सुबह बच्चे स्कूल पहुंचे और प्रार्थना के लिए इकट्ठा हो रहे थे, उसी दौरान छत से पत्थर झड़ने लगे थे। छात्रों ने तुरंत टीचर्स को इसकी जानकारी दी। लेकिन टीचर्स उस समय बाहर नाश्ता कर रहे थे और उन्होंने बच्चों की बात को गंभीरता से नहीं लिया।
छात्र के अनुसार, "हमने टीचर्स से कहा कि ऊपर से पत्थर गिर रहे हैं, लेकिन उन्होंने डांट दिया और कहा कि अंदर जाओ, कुछ नहीं होगा। हम डर गए थे लेकिन वापस कक्षा में चले गए। थोड़ी देर बाद ही जोर की आवाज आई और छत का बड़ा हिस्सा भरभरा कर गिर गया।"
इस लापरवाही का अंजाम बेहद भयावह रहा। लगभग 35 छात्र मलबे में दब गए, जिनमें से 7 की मौत हो गई और बाकी गंभीर रूप से घायल हो गए। मौके पर अफरा-तफरी मच गई। ग्रामीणों और प्रशासन ने तत्काल बचाव कार्य शुरू किया और बच्चों को अस्पताल पहुंचाया गया।
इस हादसे के बाद शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन पर भी सवाल उठने लगे हैं। लोगों का कहना है कि स्कूल की इमारत पहले से ही जर्जर हालत में थी, लेकिन इसके बावजूद उसे मरम्मत नहीं किया गया। स्थानीय लोगों का आरोप है कि अधिकारियों की अनदेखी और सिस्टम की लापरवाही ने मासूम बच्चों की जान ले ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस हादसे पर शोक जताया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "राजस्थान के झालावाड़ में एक स्कूल में हुई दुर्घटना अत्यंत दुखद है। मेरी संवेदनाएं प्रभावित परिवारों के साथ हैं।"
राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की है और हादसे की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। वहीं स्थानीय लोगों की मांग है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और स्कूलों की जर्जर इमारतों की तत्काल जांच कराई जाए।
यह हादसा एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर कब तक मासूम बच्चों की जानें ऐसी लापरवाहियों की भेंट चढ़ती रहेंगी।

