उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से प्रदेश की राजनीति में आया भूचाल, ताजा वीडियो में देंखे कांग्रेस ने जाटों की अनदेखी को लेकर बीजेपी पर बोला धावा
उप राष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद राजस्थान की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। इस घटनाक्रम ने राजनीतिक दलों के बीच विशेष रूप से जाट समुदाय को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। कांग्रेस ने इस मौके पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को आड़े हाथों लेते हुए आरोप लगाया कि पार्टी ने लंबे समय से किसानों और जाट समाज की उपेक्षा की है।
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब बीजेपी में प्रदेश स्तर पर कोई भी जाट नेता प्रमुख पद पर नहीं है। उन्होंने कहा, "बीजेपी की नीति हमेशा किसान और जाट समाज के खिलाफ रही है। जब तक जाट समाज से कोई बड़ा चेहरा पार्टी में था, तब तक उन्होंने उसका उपयोग किया, अब जब वो पद छोड़ चुके हैं, तो पार्टी की असल सोच सामने आ गई है।"
डोटासरा ने आगे कहा कि बीजेपी को अब प्रदेश में जाटों को साधने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। “किसान, युवा और ग्रामीण समाज बीजेपी से नाराज हैं। जाटों ने हमेशा देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बीजेपी उन्हें बार-बार नजरअंदाज कर रही है,” उन्होंने कहा।
कांग्रेस का यह बयान ऐसे समय आया है जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर हलचल तेज हो रही है। प्रदेश में जाट समुदाय की अहम भूमिका को देखते हुए यह मसला बीजेपी के लिए राजनीतिक दृष्टिकोण से गंभीर साबित हो सकता है। आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान की करीब 70 विधानसभा सीटों पर जाट वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में किसी भी राजनीतिक दल के लिए इस समुदाय की उपेक्षा नुकसानदायक हो सकती है।
हालांकि बीजेपी की ओर से अब तक डोटासरा के आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। पार्टी के कुछ नेताओं ने अनौपचारिक तौर पर कहा है कि उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना जगदीप धनखड़ का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है और इसका पार्टी की नीतियों या समुदाय विशेष से कोई संबंध नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस अब प्रदेश में जाट समुदाय को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगी। वहीं, बीजेपी को भी जल्द ही जाट नेताओं को सक्रिय भूमिका में लाने की रणनीति बनानी पड़ सकती है, ताकि आगामी चुनाव में इसका कोई प्रतिकूल असर न हो। इस पूरे घटनाक्रम ने राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर जातीय समीकरणों को केंद्र में ला दिया है। अब देखना यह होगा कि बीजेपी इस सियासी चुनौती का किस तरह जवाब देती है।

