राजस्थान की अधीनस्थ अदालतों में आज से काम बंद, दो मिनट के वीडियो में जानें 1638 अदालतों में क्यों नहीं होगी सुनवाई
राजस्थान में कैडर पुनर्गठन की वर्षों से लंबित मांग को लेकर न्यायिक कर्मचारियों का सब्र अब जवाब दे गया है। इस मुद्दे को लेकर प्रदेश के करीब 20 हजार न्यायिक कर्मचारियों ने शुक्रवार से सामूहिक अवकाश पर जाने का निर्णय लिया है। इसका सीधा असर प्रदेशभर की 1638 अधीनस्थ अदालतों की कार्यवाही पर पड़ेगा, क्योंकि अदालतों के दरवाजे खुलने से पहले ही न्यायिक स्टाफ ने कामकाज ठप करने की चेतावनी दे दी है।
धरने पर डटे कर्मचारी, अध्यक्ष भूख हड़ताल पर
राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ के बैनर तले कर्मचारी पिछले चार दिनों से जयपुर में कोर्ट परिसर में धरना दे रहे हैं। संघ के प्रदेशाध्यक्ष भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं और कर्मचारियों की मांगें पूरी न होने तक आंदोलन जारी रखने का ऐलान कर चुके हैं। आंदोलनकारी कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने उनकी मांगों को लगातार नजरअंदाज किया है, जिससे अब मजबूरीवश उन्हें न्यायिक व्यवस्था को ठप करने जैसा कदम उठाना पड़ा है।
अदालतों में ताले, न्यायिक कार्य ठप
शुक्रवार से अदालतों में सुनवाई से लेकर दस्तावेजी कार्य, नकल, पेशी, रिकॉर्ड संभालना, सभी कार्य पूरी तरह से ठप रहेंगे। अधीनस्थ अदालतों की कार्यप्रणाली न्यायिक कर्मचारियों पर काफी हद तक निर्भर करती है। उनके अवकाश पर चले जाने से अदालतों में न तो फाइलें आगे बढ़ेंगी और न ही मामलों की सुनवाई हो सकेगी।
क्या है कैडर पुनर्गठन की मांग?
न्यायिक कर्मचारियों की सबसे प्रमुख मांग कैडर पुनर्गठन की है, जो पिछले कई वर्षों से लंबित है। संघ का कहना है कि न्यायिक कर्मचारियों की पदोन्नति, वेतनमान, कार्यभार और संरचना को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई है। इससे कर्मचारियों को न तो करियर में ग्रोथ मिल पा रही है और न ही उनका मनोबल ऊंचा हो पा रहा है।
कर्मचारियों की चेतावनी: मांगे नहीं मानी तो आंदोलन और तेज होगा
संघ ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने जल्द ही कैडर पुनर्गठन को लेकर सकारात्मक निर्णय नहीं लिया, तो आंदोलन को और व्यापक किया जाएगा। इस आंदोलन में न केवल राजस्थान के न्यायिक कर्मचारी, बल्कि अन्य न्यायिक संगठनों का भी समर्थन मिल सकता है।
आम जनता होगी प्रभावित
इस सामूहिक अवकाश का सीधा असर आम जनता पर पड़ेगा। मुकदमों की सुनवाई टलने, दस्तावेजी प्रक्रिया ठप होने और नकल नहीं मिलने से आम नागरिकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। अधिवक्ताओं ने भी चिंता जताई है कि न्याय प्रक्रिया बाधित होने से लंबित मामलों का बोझ और बढ़ जाएगा।

