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राजस्थान में 12वीं की इतिहास की किताब पर सियासी घमासान, वीडियो में जानें पीएम मोदी के योगदान को नजरअंदाज करने का आरोप

12वीं की किताब में कांग्रेसी-प्रधानमंत्रियों पर पाठ,मोदी का सिर्फ जिक्र

राजस्थान में 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब को लेकर नया सियासी विवाद खड़ा हो गया है। "आजादी के बाद का स्वर्णिम इतिहास" नामक इस पुस्तक में महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और अन्य कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के योगदान को प्रमुखता से शामिल किया गया है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योगदान पर बेहद कम जानकारी होने को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।

विवाद उस समय गहराया जब यह सामने आया कि किताब में मोदी सरकार के 11 साल के कार्यकाल का कोई उल्लेखनीय विवरण नहीं है। इसके बाद राज्य सरकार ने यह फैसला लिया कि अब यह पुस्तक विद्यार्थियों को नहीं पढ़ाई जाएगी।

किताब में क्या है विवाद का कारण?

बताया जा रहा है कि इस किताब में आज़ादी के बाद की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक उपलब्धियों को विस्तार से बताया गया है, जिसमें कांग्रेस शासनकाल की योजनाओं, नेताओं और नीतियों पर विशेष फोकस किया गया है। लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुई योजनाओं जैसे डिजिटल इंडिया, उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया, जी20 की अध्यक्षता, राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 हटाना जैसी घटनाओं का उल्लेख न के बराबर है।

इस असंतुलनपूर्ण प्रस्तुति को लेकर सरकार और बीजेपी समर्थकों ने कड़ी आपत्ति जताई है।

शिक्षा विभाग का फैसला

राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि, “इतिहास की किताब को छात्रों के लिए निष्पक्ष और संतुलित होना चाहिए। किसी एक राजनीतिक विचारधारा का पक्ष नहीं लिया जा सकता। यदि किसी प्रधानमंत्री के 11 वर्षों के योगदान को अनदेखा किया गया है, तो यह शिक्षा की निष्पक्षता के खिलाफ है।”

सरकार ने स्पष्ट किया है कि अब यह किताब शैक्षणिक पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं होगी, और जल्द ही इसकी समीक्षा कर नई किताब तैयार की जाएगी जिसमें सभी प्रधानमंत्रियों और उनके कार्यकाल का निष्पक्ष विवरण दिया जाएगा।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया

दूसरी ओर कांग्रेस ने इसे राजनीतिक दबाव में लिया गया फैसला बताया है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा, “भाजपा सरकार इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करना चाहती है। गांधी, नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे नेताओं का योगदान भारतीय लोकतंत्र की नींव है। इसे मिटाया नहीं जा सकता।”

विशेषज्ञों की राय

शिक्षाविदों का मानना है कि इतिहास की किताबों में संतुलन और तथ्यों की प्रामाणिकता जरूरी है। यदि कोई किताब किसी कालखंड या नेता को अनदेखा करती है, तो छात्रों को अधूरी जानकारी मिलती है, जिससे उनका दृष्टिकोण एकतरफा हो सकता है।

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