राजस्थान में पहाड़ों पर निर्माण को लेकर नए बायलॉज लागू, वीडियो मे जानें मकान, रिसोर्ट और फार्म हाउस बनाने का रास्ता साफ
राजस्थान में अब पहाड़ी इलाकों में मकान, रिसोर्ट और फार्म हाउस जैसे निर्माण कार्य संभव हो सकेंगे। राज्य सरकार ने शहरी क्षेत्रों में स्थित पहाड़ों पर निर्माण को लेकर नए हिल बायलॉज (Hill Bye-Laws) जारी किए हैं। इन बायलॉज के तहत पहाड़ों को तीन अलग-अलग श्रेणियों में बांटते हुए निर्माण की अनुमति देने का प्रावधान किया गया है। सरकार के इस फैसले से रियल एस्टेट और पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है, हालांकि पर्यावरण को लेकर चिंताएं भी सामने आ रही हैं।
सरकार द्वारा जारी बायलॉज के अनुसार, पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति, ढलान और पर्यावरणीय संवेदनशीलता के आधार पर उन्हें तीन कैटेगरी में वर्गीकृत किया गया है। इसी वर्गीकरण के आधार पर यह तय किया जाएगा कि किस पहाड़ी क्षेत्र में किस प्रकार का निर्माण किया जा सकता है। पुराने नियमों के तहत करीब 60 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र में निर्माण की छूट दी जाती थी। लेकिन भाजपा सरकार ने नए हिल बायलॉज लागू करते हुए इस दायरे को घटा दिया है। इसके बावजूद लगभग 30 से 40 प्रतिशत पहाड़ों पर निर्माण की अनुमति अब भी बरकरार रखी गई है।
वर्तमान में राजस्थान के कई ऐसे शहर हैं, जहां अरावली पर्वतमाला से अलग पहाड़ों की श्रृंखलाएं मौजूद हैं। इनमें जयपुर, कोटा, बूंदी, करौली, सवाई माधोपुर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जैसे जिले शामिल हैं। इन इलाकों में लंबे समय से पहाड़ों पर माइनिंग गतिविधियां होती रही हैं, जिससे कई पहाड़ लगभग समाप्त हो चुके हैं या उनकी प्राकृतिक संरचना को भारी नुकसान पहुंचा है।
विशेष रूप से जयपुर के गोनेर, बस्सी, कालवाड़ और झालाना जैसे क्षेत्रों में अवैध माइनिंग के कारण कई पहाड़ पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। इन पहाड़ियों की जमीन अब खाली पड़ी हुई है। नए बायलॉज के लागू होने के बाद ऐसी जमीनों पर आवासीय कॉलोनियां, मल्टी स्टोरी इमारतें, रिसोर्ट या अन्य व्यावसायिक निर्माण कार्यों को अनुमति मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
सरकार का तर्क है कि जिन पहाड़ियों पर पहले ही माइनिंग हो चुकी है और जो प्राकृतिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, वहां नियोजित विकास की अनुमति देना बेहतर विकल्प है। इससे शहरी विस्तार को नियंत्रित तरीके से बढ़ावा मिलेगा और अवैध निर्माण पर रोक लगाई जा सकेगी। साथ ही पर्यटन और आवासीय परियोजनाओं से रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।
हालांकि पर्यावरण विशेषज्ञ और सामाजिक संगठनों ने इस फैसले पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि पहाड़ों पर निर्माण से जल स्रोतों, जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों ने मांग की है कि निर्माण की अनुमति देते समय पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA) को सख्ती से लागू किया जाए।

