जल जीवन मिशन घोटाला में फर्जी प्रमाण पत्र से आगे बढ़ी जांच, 1500 करोड़ तक के एडवांस भुगतान का खुलासा
राजस्थान में जल जीवन मिशन (JJM) से जुड़ा घोटाला केवल फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर 900 करोड़ रुपए के टेंडर लेने तक सीमित नहीं है। जैसे-जैसे इस मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (SIT) ने अपने दायरे का विस्तार किया है, वैसे-वैसे घोटाले की परतें खुलने लगी हैं। अब जांच में इंजीनियरों और ठेकेदार फर्मों की मिलीभगत से किए गए बड़े वित्तीय अनियमितताओं के संकेत मिल रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, जल जीवन मिशन के तहत प्रदेश के कम से कम 12 रीजन में ठेकेदार फर्मों ने भारी स्तर पर गड़बड़ियां कीं। जयपुर, जोधपुर, बांसवाड़ा, दूदू, सीकर सहित कई जिलों में फर्मों ने निर्माण सामग्री मौके पर पहुंचाए बिना ही इंजीनियरों से मिलीभगत कर एडवांस भुगतान हासिल कर लिया। आरोप है कि सिर्फ कागजों और फोटो के आधार पर सामग्री की सप्लाई दर्शाई गई, जबकि जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हुआ।
SIT की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि इस प्रक्रिया के जरिए फर्मों ने करीब 1200 से 1500 करोड़ रुपए तक का एडवांस पेमेंट उठा लिया। नियमों के अनुसार, निर्माण सामग्री की वास्तविक आपूर्ति और साइट पर सत्यापन के बाद ही भुगतान किया जाना चाहिए था, लेकिन अधिकारियों और इंजीनियरों की मिलीभगत से इस प्रक्रिया को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया।
जल जीवन मिशन का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाना है, लेकिन घोटाले ने इस महत्वाकांक्षी योजना की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई गांवों में पाइपलाइन, टंकी और अन्य संरचनाएं अधूरी पड़ी हैं, जबकि कागजों में काम पूरा दिखा दिया गया। इसका सीधा असर ग्रामीण जनता पर पड़ा है, जिन्हें आज भी पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है।
सूत्रों का कहना है कि SIT अब केवल फर्मों ही नहीं, बल्कि उन अभियंता, सहायक अभियंता और अधिकारियों की भूमिका की भी जांच कर रही है, जिन्होंने भुगतान को मंजूरी दी। जांच में यह भी देखा जा रहा है कि किस स्तर पर फर्जी फोटो, निरीक्षण रिपोर्ट और दस्तावेज तैयार किए गए। कई मामलों में एक ही तरह की तस्वीरें अलग-अलग साइट्स के नाम पर उपयोग किए जाने की आशंका भी जताई जा रही है।
राज्य सरकार की ओर से गठित SIT को व्यापक अधिकार दिए गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि जांच के दायरे में आने वाले सभी दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, चाहे वे किसी भी पद पर क्यों न हों। जरूरत पड़ने पर ईडी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों से भी सहयोग लिया जा सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह आरोप सही साबित होते हैं, तो यह घोटाला राज्य के सबसे बड़े प्रशासनिक और वित्तीय घोटालों में गिना जाएगा। इससे न केवल सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है, बल्कि जनता का भरोसा भी कमजोर पड़ा है।
फिलहाल SIT की जांच जारी है और आने वाले दिनों में और बड़े खुलासे होने की संभावना जताई जा रही है। यह मामला इस बात का उदाहरण बन सकता है कि अगर योजनाओं की निगरानी मजबूत न हो, तो जनहित की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं।

