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बीजेपी की कंवरलाल मीणा की विधायकी बचाने की कोशिश, वीडियो में जानें आज करेंगे कोर्ट में सरेंडर

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक कंवरलाल मीणा को अब सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिल पाई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उन्हें बुधवार को अदालत में आत्मसमर्पण करना होगा। यह मामला वर्षों पुराना है, जिसमें कंवरलाल मीणा पर एक प्रशासनिक अधिकारी को धमकाने और पिस्टल दिखाने का आरोप था। ट्रायल कोर्ट द्वारा तीन साल की सजा सुनाए जाने के बाद उन्होंने राहत के लिए राजस्थान हाईकोर्ट और फिर सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया, लेकिन दोनों ही अदालतों ने उन्हें कोई राहत नहीं दी।

यह मामला 2012 का है, जब अलवर जिले के तत्कालीन एसडीएम को एक भूमि विवाद के दौरान कंवरलाल मीणा द्वारा धमकाने और हथियार दिखाने का आरोप लगाया गया था। इस घटना के बाद प्रशासनिक अधिकारियों में रोष फैल गया था और पूरे प्रदेश में इस मामले की काफी चर्चा हुई थी। ट्रायल कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद 2023 में मीणा को दोषी करार देते हुए तीन साल की कैद की सजा सुनाई थी।

ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ मीणा ने राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां से भी उन्हें कोई अंतरिम राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में कोई त्रुटि नहीं पाई गई है। कोर्ट ने मीणा को आदेश दिया कि वे 22 मई, बुधवार को खुद को न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पित करें।

अब सवाल यह उठता है कि अगर मीणा को तीन साल की सजा मिलती है और वह कायम रहती है, तो उनकी विधानसभा सदस्यता भी खतरे में पड़ सकती है। भारतीय संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत, किसी भी जनप्रतिनिधि को दो वर्ष या उससे अधिक की सजा होने पर उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। ऐसे में अगर उन्हें कोई राहत नहीं मिलती है, तो भाजपा को रामगढ़ क्षेत्र से नए उम्मीदवार की तलाश करनी पड़ सकती है।

भाजपा नेतृत्व इस पूरे घटनाक्रम पर फिलहाल चुप्पी साधे हुए है, लेकिन पार्टी के लिए यह स्थिति काफी असहज मानी जा रही है। विपक्षी कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है और भाजपा की "सुशासन" की नीति पर सवाल खड़े किए हैं।

कंवरलाल मीणा का यह मामला सिर्फ एक विधायक की कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि यह जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही और आचरण से जुड़ा बड़ा सवाल बन गया है। अब देखना यह होगा कि मीणा की कानूनी टीम आगे क्या रणनीति अपनाती है और क्या उन्हें आगे कोई राहत मिलती है या नहीं।

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