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राष्ट्रपति मुर्मू से मिले बीजेपी राजस्थान एसटी मोर्चा के पदाधिकारी, नारायण मीना ने भेंट किया राणा पूंजा का स्मृति चिह्न सामने आया शानदार वीडियो

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राष्ट्रपति भवन में शुक्रवार को एक विशेष भेंट समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें देशभर से आए विभिन्न जनजातीय समुदायों के प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की। इस दौरान राजस्थान से पहुंचे भाजपा एसटी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष नारायण मीना ने राष्ट्रपति को महाराणा पूंजा का स्मृति चिह्न भेंट कर राज्य की जनजातीय शौर्य गाथा से अवगत कराया।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जो स्वयं भी एक जनजातीय समुदाय से आती हैं, ने इस मुलाकात को एक सांस्कृतिक एकता और जनजातीय गौरव के प्रतीक के रूप में सराहा। उन्होंने कहा कि भारत की जनजातीय परंपराएं और विरासत देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं।

राणा पूंजा: जनजातीय शौर्य का प्रतीक

नारायण मीना द्वारा राष्ट्रपति को भेंट किया गया स्मृति चिह्न मेवाड़ के जनजातीय नायक राणा पूंजा की वीरता का प्रतीक था। राणा पूंजा वह वीर योद्धा थे जिन्होंने महाराणा प्रताप के संघर्ष में सहयोग करते हुए हल्दीघाटी युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। उनकी वीरता आज भी राजस्थान के भील समाज के बीच गर्व और प्रेरणा का स्रोत है।

मीना ने राष्ट्रपति को बताया कि राणा पूंजा सिर्फ इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि आज भी राजस्थान के आदिवासी समाज के सांस्कृतिक और आत्मिक आदर्श हैं।

जनजातीय मुद्दों पर हुई चर्चा

इस भेंट के दौरान नारायण मीना और एसटी मोर्चा के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों ने राष्ट्रपति से राजस्थान के जनजातीय समाज से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, वन अधिकार, और जनजातीय युवाओं के लिए कौशल विकास जैसे विषय प्रमुख रहे। उन्होंने आग्रह किया कि केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं को जमीन तक पहुंचाने में तेजी लाई जाए

राष्ट्रपति ने दी सकारात्मक प्रतिक्रिया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रतिनिधियों की बातों को गंभीरता से सुना और आश्वस्त किया कि जनजातीय समाज की उन्नति और आत्मनिर्भरता के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदायों की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली, पर्यावरण के प्रति समर्पण और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखना आवश्यक है।

सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक

यह मुलाकात केवल एक औपचारिक भेंट नहीं थी, बल्कि यह जनजातीय अस्मिता और राष्ट्रीय समरसता का सशक्त संदेश थी। राजस्थान से प्रतिनिधित्व करते हुए नारायण मीना और उनकी टीम ने न केवल राज्य की संस्कृति को सामने रखा, बल्कि जनजातीय समाज की आकांक्षाओं को भी राष्ट्रपति तक पहुंचाया।

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