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राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में 15 दिवसीय पांडुलिपि रूपांतरण कार्यशाला का शुभारंभ, वीडियो में जानें भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण की पहल

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जोरावर सिंह गेट स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक पहल के तहत 15 दिवसीय पांडुलिपि रूपांतरण कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नई दिल्ली, विश्व गुरु दिवस आश्रम शोध संस्थान, जयपुर और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की जा रही है।

कार्यशाला का उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों के संपादन, रूपांतरण और संरक्षण की दिशा में युवाओं, शोधकर्ताओं और विद्वानों को प्रशिक्षित करना है। इस पहल को भारतीय ज्ञान परंपरा को संरक्षित करने की दिशा में एक सांस्कृतिक और शैक्षणिक मील का पत्थर माना जा रहा है।

पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण की दिशा में कदम

भारत में हजारों वर्ष पुरानी पांडुलिपियाँ आज भी विभिन्न संस्थानों, मंदिरों, मठों और निजी संग्रहों में सुरक्षित हैं, लेकिन उनका डिजिटलीकरण, संपादन और वैज्ञानिक रूपांतरण न होने से वे धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। इस कार्यशाला के माध्यम से इन्हीं ग्रंथों को आधुनिक शोध पद्धतियों के अनुरूप संरक्षित और पुनर्पाठित करने का प्रयास किया जा रहा है।

कार्यशाला में संस्कृत, आयुर्वेद, दर्शन, व्याकरण, साहित्य और इतिहास जैसे विषयों से जुड़ी पांडुलिपियों पर काम किया जाएगा।

विशेषज्ञों और विद्वानों की सहभागिता

इस कार्यशाला में देशभर के पांडुलिपि विशेषज्ञ, आयुर्वेदाचार्य, संस्कृत विद्वान और शोध छात्र भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के वरिष्ठ अधिकारी, आयुर्वेद संस्थान के कुलपति और शोध संस्थानों के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।

प्रारंभिक सत्र में विशेषज्ञों ने पांडुलिपियों की लिपियों की पहचान, भाषा शुद्धि, संपादन की तकनीक, संरक्षण के पारंपरिक और वैज्ञानिक उपायों पर अपने विचार साझा किए।

कार्यशाला में क्या-क्या होगा खास

  • प्रैक्टिकल प्रशिक्षण: पांडुलिपियों को पढ़ना, उनकी लिपि को समझना, और डिजिटल रूपांतरण की प्रक्रिया

  • संपादन विधियां: टीकाओं के साथ मूल ग्रंथों का वैज्ञानिक संपादन

  • संरक्षण प्रक्रिया: भौतिक पांडुलिपियों की देखभाल, रसायन रहित संरक्षण तकनीक

  • डिजिटलीकरण: आधुनिक तकनीकों द्वारा स्कैनिंग और डिजिटल आर्काइविंग

नवाचार और युवाओं की भागीदारी

यह कार्यशाला न केवल संस्कृत और आयुर्वेद जैसे पारंपरिक विषयों में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए उपयोगी है, बल्कि यह उन्हें भारत की धरोहर से जुड़ने और उसे सहेजने की प्रेरणा भी देती है। युवाओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण देने के लिए हस्तलिखित पांडुलिपियों की असली प्रतियों पर कार्य करने का अवसर भी दिया जा रहा है।

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