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Indore नर्मदा के कछार में शिवराज-नाथ में घमासान, आखिर बजरंगबली लगाएंगे किसका बेड़ा पार, महाकौशल अंचल: 38 में से 24 सीटें हैं कांग्रेस के पास, 13 पर भाजपा
 

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मध्यप्रदेश न्यूज़ डेस्क, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बजरंगबली की एंट्री ने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थी. अब मध्यप्रदेश में महाकौशल से बजरंगबली सियासी एजेंडे के केंद्र में आ गए हैं. इस अंचल के दूसरे सबसे बडे़ जिले छिंदवाड़ा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बीच घमासान मचा हुआ है. यह सब केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ भर नहीं है, बल्कि इसके केंद्र में महाकौशल की 38 सीटें हैं. जहां 24 सीटों पर जीत के साथ कांग्रेस और कमलनाथ का दबदबा जमा था. भाजपा अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए धार्मिक, सामाजिक से लेकर जातीय कार्ड खेलने में कोई परहेज नहीं कर रही है. छिंदवाड़ा जिले के जामसांवली में 314 करोड़ की लागत से हनुमान लोक बनाने की मुख्यमंत्री की घोषणा इसी रणनीति का एक हिस्सा है. तो कमलनाथ ने भी बागेश्वर पीठ के धीरेंद्र शास्त्री की कथा कराकर इसी पिच को आजमाने की कोशिश की है.
भइया पर भारी पडे़ भाऊ

सत्ता में भागीदारी में भी कांग्रेस भाजपा पर भारी रही, तत्कालीन सीएम कमलनाथ व दो कैबिनेट मंत्री इस रीजन थे. भाजपा सरकार में एक राज्यमंत्री महाकौशल को मिला. इसका पार्टी के भीतर असंतोष देखने को मिलता रहा. वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई हमेशा सरकार को आईना दिखाते रहे. हाल में हुए मंत्रिमंडल विस्तार भी बालाघाट तक सीमित रह गया. भइया यानी विश्नोई पर गौरीशंकर बिसेन (भाऊ) भारी पड़ गए. यह दिलचस्प है कि बालाघाट जिले की छह सीटों में दो ही भाजपा के पास हैं. दोनोंविधायक मंत्रिमंडल में हैं. सिवनी, नरसिंहपुर, जबलपुर से लेकर कटनी, मंडला तक खाली है.
जो जीता वही...
प्रदेश की राजनीति में एक कहावत है कि जो जीता महाकौशल उसने जीती सत्ता. 2003 से लेकर 2018 तक के आंकडे़ इसकी पुष्टि भी करते हैं. 2003 से 2013 तक भाजपा ने इस इलाके में एकतरफा जीत दर्ज की और बहुमत से सरकार बनाई. लेकिन 2018 में महाकौशल के ही छिंदवाड़ा के तत्कालीन सांसद कमलनाथ के कांग्रेस की कमान संभालते ही यहां का मिजाज बदल गया. छिंदवाड़ा और डिंडोरी में भाजपा का खाता तक नहीं खुल पाया और 38 में से 24 सीटें कांग्रेस ने जीतकर सरकार बना ली और भाजपा के खाते मेंमहज 13 सीटें आईं.
तब सियासी केंद्र, अब नहीं नाथ की काट
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में सियासी केंद्र महाकौशल था. कांग्रेस की कमान कमलनाथ के हाथ थी तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सांसद राकेश सिंह थे. सत्ता पलट के साथ समीकरण बदल गए. महाकौशल में कमलनाथ का दबदबा है. 23 साल बाद जबलपुर नगर निगम महापौर का चुनाव जीतकर कांग्रेस ने ताकत की बानगी दिखा भी दी थी. लेकिन, भाजपा नाथ की काट नहीं खोज पाई. छिंदवाड़ा से लेकर कटनी तक भाजपा के पास क्षेत्रीय नेतृत्व गायब है.
नर्मदा और आदिवासी पर फोकस
पिछले चुनाव में भाजपा को सबसे अधिक नुकसान आदिवासी इलाकों में हुआ था. इसलिए आदिवासी अस्मिता को उभारने में पार्टी ने पूरी ताकत लगा दी. पड़ोसी संभाग शहडोल से पेसा एक्ट लागू किए जाने का ऐलान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा, केंद्रीय गृहमंत्री की जबलपुर में सभा कराकर रानीदुर्गावती स्मारक, शहीद रघुनाथ शाह-शंकर शाह की स्मृतियों को संजोने से लेकर मंडला से जन आशीर्वाद यात्रा का आगाज इसी रणनीति का हिस्सा रहा है. तो कांग्रेस ने भी प्रियंका गांधी की जबलपुर में रैली कराकर गारंटियों से साधने की कोशिश की है. नर्मदा दोनों ही दलों के कोर में है और नर्मदा कॉरिडोर से लेकर नमामि नर्मदे के प्रोजेक्ट बनाए गए हैं. पर मुद्दे रोजगार, महंगाई ही है. वनाधिकार मांगते आदिवासी नरसिंहपुर के गन्ना किसानों का भुगतान, चुटका और एनटीपीसी के लिए जमीन अधिग्रहण जैसे मुद्दे इस बार भी राजनीतिक दलों से सवाल कर रहे हैं. जबलपुर शहर सेवानिवृत्त कर्मचारियों का बड़ा ठिकाना है जो ओल्ड पेंशनका मुद्दा उठा रहे हैं.

इंदौर न्यूज़ डेस्क !!!
 

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