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Gaya  खेती-किसानी जलवायु परिवर्तन से फल हुए छोटे तो स्वाद में भी आया फीकापन

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र की वहन क्षमता निर्धारित करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने सुझाव दाखिल किए हैं।  केंद्र ने सुझाव दिया कि सभी 13 हिमालयी राज्यों को समयबद्ध तरीके से वहन क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए कार्रवाई रिपोर्ट और कार्य योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जा सकता है।  केंद्र सरकार ने जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान द्वारा तैयार दिशानिर्देशों के अनुसार बहु-विषयक अध्ययन करने के लिए संबंधित राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन और उसमें अन्य सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा।  इसने हिमालयी राज्यों द्वारा तैयार किए गए वहन क्षमता अध्ययनों की जांच या मूल्यांकन करने और कार्यान्वयन के लिए संबंधित राज्यों को अपनी रिपोर्ट भेजने के लिए एक तकनीकी समिति के गठन के निर्देश मांगे।  उत्तराखंड के जोशीमठ में हाल के दिनों में जमीन के फटने और धंसने जैसी समस्‍याओं की पृष्ठभूमि में भारतीय हिमालयी क्षेत्र की

बिहार न्यूज़ डेस्क जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्प्रभाव और तपिश ने फलों के राजा आम की मिठास छीन ली है. उन्नत किस्म के आमों के भी स्वाद में फीकापन आने लगा. हीट वेब का आम के पेड़ों पर प्रतिकूल असर पड़ा. जिसके कारण आम के स्वाद और पकने में भी विलंब होने लगा.

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो अप्रैल माह में आम की गुठली तैयार होती है. उस समय पारा  से 35 डिग्री के बीच होना चाहिए. मगर तापमान 38 से 40 डिग्री चला गया. बताया जाता है कि  माह में लंगड़ा, दशहरी, चौसा सहित कई किस्म के आम के परिपक्व होने का समय रहता है. उस समय उपयुक्त तापमान 36-37 डिग्री होना चाहिए जबकि पारा 40 के पार हो गया. 15  तक आमों के पकने का समय होता है. लेकिन, समय बीतने के बाद भी रंग में परिवर्तन नही आया. मानसून सक्रिय होने पर भी आम की मिठास व स्वाद पर कोई असर नहीं पड़ा. किसान सुरेश महतो, प्रभुनाथ राय व नीरज सिंह ने बताया कि बढ़ते तापमान के कारण समय से पहले ही पेड़ों से आम तोड़े गये और मंडियों में व्यापारियों के यहां इसकी सप्लाई की गयी. इसका असर बाजारों में दिखा और आम के कीमतों में उछाल आ गया.

मौसम से आम के उत्पादन पर भी असर पड़ा किसानों का कहना है कि आम के बागों में लगातार मेहनत करनी पड़ी. नमी बरकरार रखने के लिए समय-समय पर पेड़ के जड़ों में पानी दिया गया. यदि पानी की व्यवस्था नहीं रहती तो आम का साइज छोटा हो जाता और समय से पहले ही उसमें बदलाव आने लगता है. गर्मी के कारण लागत और मेहनत दोनों बढ़ गयी. आम के उत्पादन पर भी असर पड़ा. मंडियों में इस बार आम की आवक कम रहेगी. मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं होने से आम के कारोबार करने वाले व्यापारी अच्छे दामों में बिक्री कर लाभ कमा रहे है.

मौसम का प्रभाव आम के बागानों पर रहा वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय में पदस्थापित कृषि वैज्ञानिक डॉ डीके सिंह ने बताया कि मौसम का प्रभाव आम के बागानों पर रहा. आम पकने के समय बारिश नही हुई. जिससे इसके स्वाद व मिठास में कमी आयी. प्राकृतिक आवोहवा से आम अंदर से बाहर की ओर पकता है. जबकि, कारवाईड गैस से पकने वाले आम बाहर से अंदर की ओर पकता है. ऐसी स्थिति में मिठास और स्वाद दोनों पर असर पड़ता है. आम का रंग कृत्रिम रूप से पीला हो जाता है मगर प्रभेद के अनुसार मिठास नहीं मिल पाता. बाजारों में बेचने की प्रवृत्ति से ग्राहक ठगे जाते है. गैस से पकने वाले आम के सेवन से शरीर में कैंसर सहित कई बीमारियों का जन्म होता हैं.

 

 

गया न्यूज़ डेस्क 

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