
उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क रामलला के निर्माणाधीन दिव्य मंदिर का निर्माण आधुनिक तकनीक के साथ भारतीय स्थापत्य कला एवं मूर्ति कला विज्ञान का बेजोड़ नमूना सामने आ रहा है. राम मंदिर के हर भाग के निर्माण का एक निश्चित उद्देश्य है तो उसमें अलग संदेश भी निहित है.
इसी के चलते श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने देश की लगभग हर क्षेत्र के विशेषज्ञों अथवा महारथ एजेंसियों को निर्माण की जिम्मेदारियां सौंपी है. इसी शृंखला में निर्माणाधीन मंडपों में भित्तिचित्रों के निर्माण का अपना अलग विज्ञान है.
मूर्तियों के निर्माण में आकार, अलंकरण का विशेष ख्याल राम मंदिर में मूर्ति कला का हुनर दिखा रहे मूर्तिकार युवराज सिंह राठौर बताते हैं कि आइकोनोग्राफी के जरिए मूर्तियों को उत्कीर्ण करने में परंपरागत तरीके का अध्ययन कर मंदिर की वास्तुकला के अनुसार निर्माण किया जाता है.
उन्होंने बताया कि इन मूर्तियों के निर्माण में आकार प्रकार का विशेष ध्यान रखना पड़ता है जिससे मूर्तियों के चित्र (फिगर), अलंकरण (आर्नामेंटेशन) व लालित्य (ग्रेस) को ठीक रखा जा सके. उन्होंने बताया कि हर मंडप की अलग-अलग संरचना में मूर्तियों के निर्माण का भी अलग-अलग तरीका है जिसके अनुसार मूर्तियों का निर्माण किया जाता है.
उन्होंने बताया कि इन मूर्तियों की मुद्राएं भी निर्धारित है जैसे अभंग मुद्रा, द्विभंग व त्रिभंग मुद्रा. इसी के अनुसार मूर्तियां गढ़ी जाती है.
मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं बल्कि विद्यालय भी है राव
राम मंदिर निर्माण के प्रभारी गोपाल राव बताते हैं कि सृष्टि के नियामक तत्वों में देवी-देवताओं का प्रमुख स्थान है. वह अलग-अलग मंडपों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं. मंगल मूर्ति गणपति नृत्य मंडप तो संकटमोचन हनुमान जी रंगमंडप व प्रभु राम स्वयं गूढ़ी का मंडप का प्रतिनिधित्व करते हैं. उसी के अनुसार चित्रण की विधा निर्धारित है. वह कहते हैं कि प्राचीन मंदिर केवल पूजा के स्थान नहीं हैं, बल्कि विद्यालय भी है. प्राचीन काल में इन मंदिरों के अन्तर्गत ही विद्यालय होते थे जहां विषय के ज्ञान के साथ संस्कार भी मिलता था.
फैजाबाद न्यूज़ डेस्क