बिहार न्यूज़ डेस्क अपने वोट से स़ांसद व विधायकों की किस्मत लिखने वाले महरौरा के महादलितों का अब भाग्य नहीं बदला है. आजादी के 75 साल बाद भी यहां के महादलितों को ग्रामीण आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. शहर व प्रखंड के करीब होने के बाद भी यह गांव कई साल तक नगर परिषद या पंचायत से नहीं जुड़ पाया था. देश विकसित हो रहा है. लेकिन आज भी यहां की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कच्चे मकानों में गुजर बसर कर रही है.डुमरांव प्रखंड से महरौरा गांव की दूरी महज तीन सौ गज है. यहां सिर्फ महादलितों और पिछड़ों की आबादी निवास करती है. लगभग डेढ़ सौ घर महादलित के है. यहां के लोग मेहनतकशों की संख्या 98 प्रतिशत है. इस गांव में एसी एसटी वोटरों की संख्या 5 और ओबीसी वोटरों की संख्या 975 हैं. यहां के गरीब पूरे दिन मेहनत करते है, तब इनके घरों का चूल्हा जलता है. गरीबों का कहना है कि किसी तरह पेट भर रहा है. पक्का मकान उनके बूते से बाहर की बात है. उपेक्षा की स्थिति यह कि वर्ष 20 तक यह गांव नगर और पंचायत में शामिल नहीं हुआ था. जिसके कारण यहां के गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था.
नगर परिषद का वार्ड संख्या का हिस्सा है महरौरा:महरौरा गांव वर्ष 20 में कुशलपुर पंचायत में शामिल हुआ था. पंचायत के लिए वोट करने के बाद यहां के गरीबों को इस बात की उम्मीद जगी कि अब उन्हें भी आवास योजना का लाभ मिल जाएगा. लेकिन बारह साल के इंतजार के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया. वर्ष 2022 में नगर परिषद के नये परिसीमन में महरौरा नगर परिषद का वार्ड संख्या का हिस्सा बन गया. वार्ड पार्षद अनिल कुमार बताते है कि यहां के 70 प्रतिशत से अधिक गरीबों के पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं है. आवास योजना के लाभ के लिए कई बार अधिकारियों को आवेदन दिया गया. लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.
दरभंगा न्यूज़ डेस्क