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Chandigarh विपक्ष को एकजुट करने में कम नहीं हैं चुनौतियां
 

विपक्ष


हरियाणा न्यूज़ डेस्क, कर्नाटक में भाजपा की हार के बाद विपक्षी खेमे में सुगबुगाहट तेज हो गई है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दौरों से ऐसा प्रतीत तो हो रहा है कि इस बार विपक्ष चुनाव पूर्व गठबंधन को लेकर गंभीर है. हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञ इस कवायद को कठिन बताते हैं, क्योंकि तीन खेमों में बंटे विपक्ष को एक साथ ला पाना चुनौतीपूर्ण काम है.
फिलहाल विपक्षी दल तीन धाराओं में बंटे हैं. इनमें एक कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए है, जिससे 19 छोटे-बड़े दल जुड़े हैं. दूसरे समूह में वे दल हैं, जो भाजपा के खिलाफ तो हैं लेकिन यूपीए का हिस्सा नहीं हैं. इनमें तृणमूल कांग्रेस, आप, सपा, बीआरएस और वामदल शामिल हैं. तीसरे समूह में तटस्थ दल हैं जो जरूरत पड़ने पर भाजपा का साथ दे सकते हैं. इनमें बीजद, वाईएसआर कांग्रेस, तेदेपा, बसपा एवं अकाली दल शामिल हैं.


राह में रोड़े विपक्षी एकजुटता के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा दल यूपीए के तहत आएं, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा. तृणमूल कांग्रेस का रुख कांग्रेस को लेकर लचीला हुआ है लेकिन कांग्रेस को ममता का प्रस्ताव जंचा नहीं है. आप-कांग्रेस के बीच दूरी है. तृणमूल और वामदलों को एक मंच पर आने में कठिनाई है. तेलंगाना में बीआरए-कांग्रेस की आमने-सामने टक्कर है. हालांकि, बंगाल में तृणमूल, कांग्रेस और वामदलों यदि मिलकर लड़ते हैं तो इससे वहां विपक्ष की सीटें बढ़ सकती हैं. लेकिन राष्ट्रीय मुद्दों पर यूपीए के साथ खड़े रहने वाले वामदल इसमें सहज नहीं हैं. ऐसा ही यूपी-बिहार में संभव है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इन कारणों से सभी राज्यों में चुनाव पूर्व गठबंधन संभव नहीं है. सभी राज्यों में इसकी सफलता की गारंटी भी नहीं है.
इनसे निपटना होगा
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विपक्ष को एकजुट होने के साथ ही न्यूनतम साझा कार्यक्रम घोषित करना होगा, जो जन आकांक्षाओं के अनुरूप हो और सरकार से नाराज वर्ग को लुभा सके. इससे भी बड़ी चुनौती विपक्ष के लिए चुनाव से पूर्व कोई दमदार चेहरा पेश करने की होगी.
नई रणनीति तैयार हो रही
राजद प्रवक्ता प्रोफेसर सुबोध कुमार मेहता कहते हैं कि इस बार विपक्ष की रणनीति नये रूप में तैयार हो रही है. पहले की तुलना में इसमें दो भिन्नताएं हैं. एक, यह चुनाव पूर्व बनने वाला गठबंधन होगा. दूसरे, इसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक आकांक्षाओं का समायोजन होगा. इस फॉर्मूले पर विपक्ष एकजुट होता है तो यह असरदार होगा.

चंडीगढ़ न्यूज़ डेस्क !!!
 

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