
मध्यप्रदेश न्यूज़ डेस्क, गांव घर की स्मृतियां बेटी-बहू और फिर मां बनने तक का सफर तय करने वाली महिलाओं के लिए गर्मी की छुट्टियां अपने गांव-घर लौटने का एहसास साथ लाती थी. सालभर बच्चों के टाइम टेबल में उलझी मां, जिम्मेदारी के मोर्चे पर डटी बेटियों के लिए अपनी मां के साथ समय बिताने का प्यारा वक्त. अपने बच्चों के बचपन को संवारने की राह पर चलते हुए खुद के बचपन की यादों को जीने के खुशनुमा पल. अपनों के साथ हंसते-मुस्कुराते हुए नई स्मृतियां बनाने के दिन. गर्मियों की छुट्टियों में पीहर जाने की रिवायत का कम होना सुखद स्मृतियों को सदा के लिए भुला देने जैसा लगता है.
बड़ों का सुख
बड़े-बुजुर्गों के लिए बच्चों की शैतानियों का सुख अनमोल होता है. कामकाज के लिए दूर जा बसे बच्चों की नई पीढ़ी से सालभर मिलना ही नहीं हो पाता है. ऐसे में छुट्टियों की प्रतीक्षा ननिहाल के आंगन को ही नहीं नाना-नानी को भी होती थी. अपने बच्चों की गपशप और बच्चों की धमा-चौकड़ियों का वे भी सालभर बेसब्री से इंतजार किया करते थे. तीन पीढ़ियों के इस संग-साथ और लाड़-दुलार की बात ही कुछ और होती थी. बुजुुर्गों के मन में यह उम्मीद होती है कि गर्मी की छुट्टियां अकेलेपन में डूबते उनके सूने आंगन में बहार लेकर आएंगी. आज अवकाश के दिनों की आपाधापी में बड़ों को यह खुशी नहीं मिल पा रही. अगर यह खुशी मिल भी रही है तो चंद दिनों की.
भोपाल न्यूज़ डेस्क !!!