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Bhagalpur दोबारा इस्तेमाल होने वाले लॉन्च व्हीकल का सफल परीक्षण

लेकिन इसने इसरो के सबसे आधुनिक मौसम सैटेलाइट को कुछ ही मिनटो में स्पेस में स्थापित कर दिया

बिहार न्यूज़ डेस्क भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष मिशन में बड़ी कामयाबी हासिल की. कर्नाटक के चित्रदुर्ग में पहले रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) विमान के लैंडिंग मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. दोबारा इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी लॉन्च व्हीकल का नाम पुष्पक रखा गया है.

चल्लकेरे में मौजूद एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (एटीआर) में पुष्पक को चिनूक हेलीकॉप्टर से 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाया गया और रनवे पर सफलतापूर्वक छोड़ा गया. इसरो ने एक्स पर लिखा, अंतरिक्ष एजेंसी ने एक बार फिर कमाल किया. पुष्पक की सफल लैंडिंग 7.10 बजे पर हुई. यह पंखों वाला वाहन रनवे पर सटीकता से उतरा. यह ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग प्रणाली का सफलतापूर्वक इस्तेमाल करते हुए रनवे पर उतरा.

पुष्पक लॉन्च व्हीकल अंतरिक्ष तक पहुंच को सबसे किफायती बनाने का भारत का साहसिक प्रयास है.

- एस सोमनाथ, अध्यक्ष, इसरो

स्पेसएक्स ने पहले किया था शुरू

रॉकेट के दोबारा इस्तेमाल करने का सबसे पहले सफल परीक्षण एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने किया था. वर्ष 11 में इस पर काम शुरू हुआ और 15 में मस्क ने फॉल्कन 9 रॉकेट तैयार किया.

लागत होगी कम

इसरो ने बताया कि रॉकेट लॉन्चिंग की प्रक्रिया सस्ती होगी. अंतरिक्ष में उपकरण पहुंचाने में लागत भी घटेगी. वहीं, सैटेलाइट में ईंधन भरने या ठीक करने के लिए वापस लाने में मदद होगी. विमान में अत्याधुनिक नेविगेशन हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, केए-बैंड रडार अल्टीमीटर, सेंसर, स्वदेशी लैंडिंग गियर हैं.

विमान की खूबियां

● पुष्पक दोबारा इस्तेमाल होने वाला जहाज जैसा दिखने वाला विमान

● रोबोटिक लैंडिंग क्षमता से लैस

● 350 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज गति से लैंडिंग करने में सक्षम

● अंतरिक्ष तक रॉकेट की पहुंच को किफायती बनाने में कारगर

स्पेस शटल की तरह

इसरो का दोबारा इस्तेमाल होने वाला आरएलवी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के स्पेस शटल की तरह है. पंख वाला यह स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की निचली कक्षा में 10 हजार किलोग्राम से ज्यादा वजन ले जाने में सक्षम होगा. इसकी मदद से सैटेलाइट को बेहद कम कीमत पर कक्षा में स्थापित किया जा सकेगा.

 

भागलपुर न्यूज़ डेस्क

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