
उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क शहरी आबादी में प्रति हजार लोगों में 10 से 20 इसकी चपेट में हैं. जिला अस्पताल में हर महीने 80 से 90 मरीज आते हैं. इस बीमारी में पुरुष-महिला का अनुपात 2 अनुपात 1 है. 18 से 25 वर्ष आयु वर्ग के लोग सिजोफ्रेनिया के ज्यादा शिकार होते हैं. इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने सिजोफ्रेनिया मनाया जाता है.
जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. आशीष ने बताया कि यह बीमारी बढ़ने पर लोग आत्महत्या तक का प्रयास करते हैं. जल्द से जल्द इलाज मिलने पर काफी हद तक मरीज को ठीक किया जा सकता है. कुछ केस में मरीजों को रोज दवा खाने की जरूरत नहीं होती है. मरीज को एक इंजेक्शन देने पर वह काफी समय तक कार्य करता है. अगर घर या आसपास किसी के व्यवहार में बदलाव आ रहा हो तो घबराएं नहीं. अपना समय किसी झाड़-फूंक में व्यर्थ न करें. ऐसे में रोगी को सही-गलत का ज्ञान न दें. बीमारी के ठीक होने के साथ ही व्यक्ति का व्यवहार फिर से सामान्य हो जाता है.
डोपामाइन न्यूरोट्रांसमीटर की अनियमितता है कारण डॉ. आशीष के अनुसार बीमारी का कारण डोपामाइन न्यूरोट्रांसमीटर की अनियमितता होता है. डोपामाइन को मोटीवेशन हॉर्मोन भी कहा जाता है. यह एक ऐसा हार्मोन है जो प्रेरणा और मानसिक एकाग्रता देता है. यह न्यूरो हार्मोन है जो ध्यान, एकाग्रता और प्रेरणा जैसी मानसिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होता है.
फरीदपुर की महिला शादी के कुछ ही दिनों बाद रोबोट जैसी हरकतें करने लगी. घंटों धूप में खड़ी रहती थी. घरवाले झाड़-फूंक कराने लगे. कुछ लोगों के समझाने पर जिला अस्पताल लाया गया तो मनोरोग विशेषज्ञ ने बताया कि उसे कैटोटोनिया सिजोफ्रेनिया (रेयर) है. अब उसकी हालत काफी बेहतर है.
बाजार में बेकार चीजें बटोर के रखने वाले गाजियाबाद के लड़के को पुलिस ने जिला अस्पताल में भर्ती कराया तो पता चला कि वह हेबेफ्रेनिया सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है. वह बीटेक का छात्र है. उसके माता-पिता उसे तलाश रहे थे. इलाज के बाद अब वह स्वस्थ है और अच्छी कंपनी में कार्य कर रहा है.
जिसमें माहिर वही करने में दिक्कत
यह बीमारी वर्किंग मेमोरी को प्रभावित करती है जैसे जो व्यक्ति जिस काम में माहिर है वह काम नहीं कर पाता है जिससे उसकी आय पर भी असर आता है. शोध के अनुसार हमारे आहार में मिलने वाले एंटी ऑक्सीडेंट से सिजोफ्रेनिया की होने की संभावना कम हो जाती है.
बरेली न्यूज़ डेस्क