उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क खुसरो कॉलेज के चेयरमैन शेर अली जाफरी की मुश्किल और बढ़ सकती है. अब एचए खुसरो हॉस्पिटल का पंजीकरण भी विवाद में आ गया है. अस्पताल 8 साल पहले मानक पूरे न होने पर सील किया गया था. तब उसका नाम खुसरो अस्पताल था. बाद में एचए जोड़कर दोबारा पंजीकरण करा लिया. मामले में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की भूमिका भी कटघरे में है. मामला खुलने के बाद से फिलहाल अस्पताल में चिकित्सकीय गतिविधियां नहीं हो रही हैं.
डी फार्मा की फर्जी डिग्री बांटने के आरोप में शहर अली जाफरी के खिलाफ एसआईटी जांच कर रही है. पुलिस को जांच के दौरान पता चला है कि एचए खुसरो हॉस्पिटल में भी मानक पूरे नहीं हैं. अस्पताल मानक के अनुरूप है या नहीं, इसकी जांच को पुलिस ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय को पत्र भेजा है. अस्पताल में मानकों की जांच कर रिपोर्ट मांगी है.
सीएमओ डॉ. विश्राम सिंह का कहना है कि अगर एक ही भवन में पहले अस्पताल सील होने और बाद में नाम बदलकर दूसरे अस्पताल के पंजीकरण की बात है तो इसकी जांच कराई जाएगी. कल ही यहां टीम भेजकर अस्पताल में मानकों को देखा जाएगा.
बिल्डिंग वही, फिर कैसे हो गया पंजीकरण
स्वास्थ्य विभाग ने दोबारा इसी भवन में अस्पताल का पंजीकरण किस आधार पर किया, यह जांच का विषय है. जब स्वास्थ्य विभाग की टीम को ही भवन में अस्पताल संचालन के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं मिली थी तो फिर से अस्पताल का पंजीकरण करना संदेह पैदा कर रहा है. अस्पताल प्रथम तल पर संचालित है जबकि इमरजेंसी और घायल मरीजों के लिए भूतल पर ही चिकित्सा सुविधा मिलना बेहतर माना जाता है. सीढ़ी के साथ रैंप जरूरी है. अब जांच मे ंसामने आएगा.
छात्रों के बयान, जांच में मिले सबूतों से खुला फर्जीवाड़ा
करोड़ों के फर्जीवाड़े में पहला मुकदमा दर्ज कराकर आरोपियों ने खुद को बचाने के लिए चाल चली थी. ऐसे में पुलिस के लिए सबसे जरूरी था, फर्जीवाड़े की पुष्टि करने के लिए साक्ष्य और उसे मजबूत आधार देने के लिए बयान. एसआईटी की जांच इसी दिशा में केंद्रित रही.
एसआईटी ने जब खुसरो कॉलेज में सबूतों की तलाश शुरू की तो एक बात साफ हो गई थी, वहां डी-फार्मा और बी-फार्मा की क्लास ही नहीं चलती थी. वजह, वहां न तो फैकल्टी मिली और न ही क्लास रूम. एसआईटी को अब ऐसे सबूत तलाशने थे जो फर्जी डिग्री के आरोप की पुष्टि कर सके. टीम ने 24 छात्रों के बयान दर्ज किए, और उनके बयान से फर्जीवाड़े का शक और गहरा गया. इसी बीच एक छात्र को दो अलग-अलग वर्ष में दो अलग-अलग विश्वविद्यालय की डिग्री, अंकपत्र देने का मामला सामने आ गया. एक ही छात्र को दो विश्वविद्यालय की डिग्री फर्जीवाड़े का अहम सबूत थी. जांच और आगे बढ़ी तो पता चला कि कई छात्रों ने 2021 में प्रवेश लिया था और उनको 2019 की डिग्री बांटी गई थी. जबकि 2019 में वही छात्र किसी अन्य संस्थान में पढ़ रहे थे.
बरेली न्यूज़ डेस्क