BAP सांसद राजकुमार रोत ने रेल मंत्री से की मुलाकात, बांसवाड़ा-डूंगरपुर-रतलाम रेल परियोजना को शीघ्र पूरा करने की मांग
बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के सांसद राजकुमार रोत ने मंगलवार को केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने अपने आदिवासी बहुल क्षेत्र की रेल सुविधाओं को लेकर कई महत्वपूर्ण मांगें रखीं। सांसद रोत ने विशेष रूप से वर्ष 2011 में शुरू की गई बांसवाड़ा-डूंगरपुर-रतलाम रेल परियोजना को शीघ्र पूरा करने की पुरजोर मांग की।
सांसद रोत ने मंत्री को अवगत कराया कि यह रेल परियोजना बांसवाड़ा और डूंगरपुर जैसे पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों के विकास की रीढ़ बन सकती है। लेकिन परियोजना को शुरू हुए 13 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह आज तक अधूरी है। उन्होंने कहा कि यदि यह रेललाइन जल्द शुरू होती है, तो क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव आएगा, साथ ही रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।
राजकुमार रोत ने इस परियोजना के अधूरे कार्यों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि कई स्थानों पर जमीन अधिग्रहण, ट्रैक बिछाने और स्टेशन निर्माण का कार्य अभी लंबित है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि रेल मंत्रालय इस परियोजना को राष्ट्रीय प्राथमिकता में शामिल करे ताकि इसके लिए आवश्यक बजट आवंटन में तेजी लाई जा सके।
इसके अलावा, सांसद ने क्षेत्र के अन्य रेल कनेक्टिविटी मुद्दों पर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि बांसवाड़ा और डूंगरपुर जैसे जनजातीय बहुल जिलों के लोग आज भी रेलवे जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं। रोत ने रेल मंत्री से आग्रह किया कि इन जिलों को मुख्य रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए वैकल्पिक मार्गों की भी योजना बनाई जाए।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सांसद की बातों को गंभीरता से सुना और उन्हें आश्वासन दिया कि मंत्रालय इस दिशा में शीघ्र आवश्यक कदम उठाएगा। उन्होंने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों का विकास केंद्र सरकार की प्राथमिकता में है और ऐसे इलाकों को रेल नेटवर्क से जोड़ने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
मुलाकात के बाद सांसद रोत ने मीडिया से बातचीत में बताया कि वे अपने क्षेत्र की जनता की समस्याएं संसद और मंत्रालयों के माध्यम से लगातार उठा रहे हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि उनकी पहल का सकारात्मक परिणाम जल्द सामने आएगा।
गौरतलब है कि बांसवाड़ा-डूंगरपुर-रतलाम रेल परियोजना की घोषणा वर्ष 2008 में हुई थी, जबकि इसका कार्य 2011 में प्रारंभ हुआ था। लेकिन विभिन्न कारणों से यह परियोजना आज तक अधूरी है, जिससे आदिवासी इलाकों के लोगों को यातायात की सुविधा नहीं मिल पा रही है।

