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बांसवाड़ा आज भी ताक रहा रेल की राह, 14 साल पहले हुआ था शिलान्यास, पर अब भी अधूरी है आस

बांसवाड़ा आज भी ताक रहा रेल की राह, 14 साल पहले हुआ था शिलान्यास, पर अब भी अधूरी है आस

गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से सटा राजस्थान का दक्षिणी जिला बांसवाड़ा आजादी के 77 साल बाद भी भारतीय रेलवे के नक्शे से गायब है। यहां के लोगों की ट्रेन से सफर करने की चाहत एक दशक से भी ज्यादा समय से अधूरी है। 2011 में भव्य समारोह में रखी गई डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल परियोजना का शिलान्यास अभी तक धरातल पर आकार नहीं ले पाया है।

चारों तरफ रेलवे, पर बांसवाड़ा अभी भी वंचित
बांसवाड़ा की भौगोलिक स्थिति पर नजर डालें तो इसके आसपास पहले से ही रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। पूर्व में रतलाम जंक्शन 85 किमी दूर है, दक्षिण में गुजरात का दाहोद, पश्चिम में डूंगरपुर और उत्तर-पश्चिम में उदयपुर है, जो करीब 100 से 160 किमी की दूरी पर स्थित हैं। लेकिन इन सबके बीच बांसवाड़ा रेलवे से वंचित है, जिसके कारण यहां के लोगों को ट्रेन से सफर करने के लिए पहले इन स्टेशनों पर जाना पड़ता है। ऐतिहासिक परियोजना, लेकिन अधूरी
डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल लाइन देश की पहली भागीदारी वाली परियोजना थी, जिसमें राज्य सरकार और रेलवे ने 50-50 प्रतिशत अंशदान देने पर सहमति जताई थी। 2011 के रेल बजट में इसकी घोषणा हुई थी और 3 जून 2011 को तत्कालीन यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने डूंगरपुर में इसका शिलान्यास किया था। इसके बाद राजस्थान सरकार ने भी अपने हिस्से के 200 करोड़ रुपए दिए, निर्माण कार्यालय खुले और जमीन अधिग्रहण शुरू हुआ। लेकिन 2013 में सरकार बदलने के बाद परियोजना की गति धीमी हो गई और काम पूरी तरह से बंद हो गया।

केवल बजट में ही दिखी सक्रियता
पिछले वर्षों में केंद्र सरकार की ओर से परियोजना के लिए बजट में राशि की घोषणा की गई थी, लेकिन इसे जमीनी कार्य में नहीं बदला जा सका। वर्ष 2023 में इस योजना के लिए पांच करोड़ रुपए आवंटित किए गए, जबकि 2022 में भी 5.27 करोड़ रुपए जारी किए गए। चालू वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा बढ़कर 150 करोड़ रुपए हो गया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्माण कार्य सामने नहीं आया है। योजना कागजी कार्रवाई और फाइलों की दौड़ में फंसी हुई है।

जनता के प्रयास और कार्रवाई धीमी पड़ गई है

बांसवाड़ा के लोग इस रेल लाइन के लिए लंबे समय से प्रयास कर रहे थे। प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन भेजे गए। स्थानीय सांसदों ने भी इस परियोजना को फिर से शुरू करने के लिए संसद में आवाज उठाई, लेकिन 22 लाख की आबादी वाले इस जिले की मांगें अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में रेल सेवा न केवल परिवहन का साधन बनेगी, बल्कि क्षेत्रीय विकास की धुरी भी बन सकती है।

गति शक्ति योजना दे सकती है नई राह

केंद्र सरकार अगर इस परियोजना को 'प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना' में शामिल करती है, तो यह परियोजना फिर से गति पकड़ सकती है। डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल लाइन के साकार होने से बांसवाड़ा को न केवल रेल मानचित्र पर स्थान मिलेगा, बल्कि यह आदिवासी क्षेत्र देश के प्रमुख विकास मार्गों से भी जुड़ जाएगा।

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