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Allahabad दीवानी और फौजदारी मामलों में सबूत के मानक अलग-अलगहाईकोर्ट

Nainital हाईकोर्ट: शिकायतकर्ता को 1 सितंबर को कोर्ट में पेश होने के निर्देश

उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क   इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि दीवानी अदालत द्वारा दर्ज किए गए तथ्य के निष्कर्षों का आपराधिक मामले के संबंध में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. दीवानी और फौजदारी मामलों में सबूत के मानक अलग-अलग होते हैं. दीवानी मामलों में संभावनाओं की प्रधानता होती है. जबकि, आपराधिक मामलों में उचित संदेह से परे सबूत साबित करने पड़ते हैं.

कोर्ट ने कहा कि न तो कोई वैधानिक और न ही कोई कानूनी सिद्धांत है कि दीवानी या फौजदारी कार्यवाही में अदालत द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्ष समान मामलों के निस्तारण में समान पक्षों के बीच बाध्यकारी हों. यह कोई जरूरी नहीं है. दोनों मामलों का निर्णय साक्ष्य के आधार पर किया जाना चाहिए. जहां साक्ष्य अधिनियम की धारा 41 से 43 के प्रावधानों, बाद के मामलों में पिछले निर्णयों की प्रासंगिकता से निपटने पर विचार किया जा सकता है. कोर्ट ने बरेली के इज्जतनगर थाने में दर्ज मामले में राहत देने से इनकार कर दिया. साथ ही याची को ट्रायल कोर्ट के समक्ष ट्रायल में शामिल होने का आदेश दिया. यह आदेश न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह-प्रथम ने बरेली निवासी सचित अग्रवाल की ओर से आपराधिक केस से डिस्चार्ज (उन्मोचन) दाखिल पुनरीक्षण अर्जी को खारिज करते हुए दिया.

आठ साल पूर्व हुई हत्या में दोषियों को राहत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चित्रकूट के राजापुर में आठ साल पूर्व हुई हत्या के दोषियों को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश पारित किया है. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने जिन गवाहों पर भरोसा जताया. उन्हें संदेह से परे साबित नहीं किया जा सकता. लिहाजा, ट्रायल कोर्ट का फैसला सही नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति अजहर हुसैन इदरीशी की खंडपीठ ने मजीद व दो अन्य की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है. कोर्ट ने कहा कि गवाह ने अपने बयान में आरोपी को पकड़कर पुलिस को सौंपने को कहा है लेकिन पुलिस ने अपने रिकॉर्ड में ऐसे तथ्यों का उल्लेख नहीं किया. कोर्ट ने कहा कि गवाही के समग्र मूल्यांकन से यह साफ है कि उसमें विरोधाभास है.

 

 

इलाहाबाद न्यूज़ डेस्क

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