उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी और आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में ‘हरिशंकर परसाई का रचना संसार’ शीर्षक से शताब्दी व्याख्यान, पोस्टर और पुस्तक प्रदर्शनी लगी. मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक रविभूषण ने कहा कि जब भी मैं सोचता हूं 20वीं शताब्दी के भारतवर्ष को समझने के लिए किसके पास जाए, किस इतिहासकार के पास जाएं जहां उस इतिहास का एक मुकम्मल चित्र देखने को मिले, किस राजनीतिकार या चिंतक के पास जाएं और फिर अंतत: मेरी दृष्टि हिंदी के धुरंधरों पर अटक जाती है: प्रेमचंद और परसाई. परसाई को पढ़ना जरूरी है क्योंकि हमें तय करना होगा कि हमारे लिए जीवन में क्या आवश्यक है. परसाई वर्तमानता के रचनाकार हैं. रविभूषण कविता में परसाई के समकक्ष नागार्जुन को रखते हैं और उन्हें स्वाधीन भारत का राजनीतिक कवि कहते हैं. रविभूषण ने कहा कि परसाई की जन्मशती रस्म अदायगी नहीं है. ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ का ज़िक्र करते हुए वे परसाई के व्यंग्य को हास्य से नहीं, करुणा से उत्पन्न हुआ बताते हैं. प्रो. संतोष भदौरिया ने कहा कि रविभूषण प्रगतिशील आंदोलन को आगे बढ़ाने के अलावा एक लेखक, आलोचक, अध्यापक, संस्कृतिकर्मी और एक्टिविस्ट के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने कहा कि बोलने वाले और लिखने वाले बहुत कम लोग हैं, उनमें रविभूषण याद आते हैं. यह समय के साथ सीधे मुठभेड़ करना है. विषय से परिचित कराते हुए वे परसाई को प्रेमचंद की परंपरा जोड़ते हैं. अध्यक्षता कर रहीं विभागाध्यक्ष प्रो. लालसा यादव ने कहा कि इस तरह के आयोजन विद्यार्थी केंद्रित होते हैं. उनकी बौद्धिकता का विकास होगा. धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सूर्यनारायण सिंह और संचालन डॉ. अमृता ने किया. इस अवसर पर हरीश्चन्द्र पांडे, श्रीप्रकाश मिश्र, मनोज पांडेय, संजय पांडेय, रियाज खान, विकास भटनागर, प्रो. कुमार वीरेंद्र, डॉ. जनार्दन, डॉ. गाजुला राजू, डॉ. दीनानाथ मौर्या, गुरपिंदर आदि मौजूद रहे.
संस्कृत सभी भाषाओं की जननी: कुलपति
प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भय्या) राज्य विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओर से संस्कृत की उपादेयता विषय पर विमर्श संगोष्ठी का आयोजन हुआ. कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार सिंह ने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है और यह विज्ञान एवं कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा के रूप में जानी जाती है. संस्कृति ज्ञान को जानने के उद्देश्य से संस्कृत विभाग में दो नए पाठ्यक्रम कर्मकांड में डिप्लोमा और ज्योतिष डिप्लोमा भी शुरू किए गए हैं. प्रो. आशुतोष सिंह और प्रो. विवेक सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए.
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