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Agra  संकट ताजनगरी में 50 हजार को स्किजोफ्रेनिया ने जकड़ा एक इंजेक्शन, माह भर की छुट्टी
 

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उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क  हवा में बातें करना, एकांत में बुदबुदाना, कम बोलना या शांत रहना, हमेशा डरे हुए रहना. किसी में अगर ऐसे लक्षण हैं तो समझ जाइये कि वह स्किजोफ्रेनिया का शिकार हो चुका है. ऐसे में इंतजार करने के बजाए उसका तत्काल इलाज कराना जरूरी है.
विश्व भर में ऐसे मरीजों का प्रतिशत 1.0 है. इस लिहाज से आगरा की बात करें तो यहां की आबादी लगभग 50 लाख है. इसका एक प्रतिशत 50 हजार होता है. ऐसे मरीज शहर के हर कोने में मिल जाएंगे. सड़क किनारे बेतरतीब बाल बढ़ाए, कूड़ा बीनते, गंदगी में पड़े, वाहनों और लोगों को घूरते हुए लोक अक्सर दिख जाएंगे. घरों में भी डरे रहने वाले बच्चे और महिलाएं मिल सकती हैं.

यह एकांत पसंद करते हैं. इन्हें लगता है कि कोई उन्हें मारने की योजना बना रहा है. जबकि इसके विपरीत कई लोग हवा में बात करते हैं. ऐसा लगता है कि उन्हें वातावरण से कोई सिग्नल मिल रहा है. अमूमन यह किसी को चोट नहीं पहुंचाते. लेकिन रोग बिगड़ने पर यह हमलावर या आक्रामक भी हो सकते हैं. ऐसे लोगों को किसी का डर नहीं रहता. अचानक ट्रक या किसी वाहन के सामने आ जाना, बिजली का तार पकड़ लेना, ट्रेन की छत पर चढ़ जाने जैसा काम कर सकते हैं. सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो देखने को मिल जाएंगे.
17 से 30 साल के रोगी सर्वाधिक
अक्सर तीमारदारों की शिकायत रहती है कि मरीज दवाएं नहीं खाता. अब इसका उपाय भी आ गया है. ऐसे मरीजों के लिए एक महीने में सिर्फ एक इंजेक्शन काफी है. फिर उसे मुंह से दवाएं खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जबकि इस बीमारी में दवाएं भी बहुत कम दी जाती हैं. एक या दो दवाएं ही चलती हैं.
लड़कों की बात करें तो इस बीमारी का शिकार आयु वर्ग 17 से 20 साल है. जबकि लड़कियों में यह 20 से 30 साल है. लड़कों के मुकाबले लड़कियां जल्दी ठीक हो जाती हैं. बीमारी जल्द पकड़ में आने पर एक साल में इलाज हो जाता है. जबकि रोग ज्यादा बिगड़ने पर तीन से पांच साल तक इलाज कराना पड़ता है.
सीटी और एमआरआई में नहीं आता
कई बार तीमारदार अपने मरीज की सीटी या एमआरआई कराते हैं. उनके दबाव में डाक्टर भी जांच लिख देते हैं. लेकिन अधिकतर सीटी और एमआरआई से यह रोग पकड़ में आता नहीं है. केमिकल में बदलाव को ऐसी जांच नहीं पकड़ पाती हैं. मशीनें सिर्फ दिमाग के आकार या प्रकार में किसी तरह के बदलाव, रंग, आकार, ट्यूमर को पकड़ती हैं.
देश में मौजूद सबसे अच्छा इलाज
पायलट स्टडी आफ स्किजोफ्रेनिया में अमेरिका, यूके के विख्यात मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों और आगरा के मानसिक संस्थान का अध्ययन किया गया. पाया गया कि भारत में इलाज के बाद मरीजों के ठीक होने का प्रतिशत कहीं अधिक है. इसका एक कारण संयुक्त परिवार भी निकला. जबकि विकसित देशों में मरीज सिर्फ नर्स के सहारे रहता है.


आगरा न्यूज़ डेस्क
 

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