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Agra  आईसीयू वाले 50 बच्चों की किडनी को खतरा

Jodhpur  अंगदान की जंग: 4 साल बाद किडनी ट्रांसप्लांट की उम्मीद, 3 साल से ऑर्गन रिट्रीवल सेंटर का इंतजार

उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क   पैदा होते ही या बाद में आईसीयू में भर्ती होने वाले 50 फीसदी बच्चों की किडनी फेल्योर होने का खतरा रहता है. इसका प्रमुख कारण शरीर में पानी की कमी और संक्रमण हैं. सही इलाज नहीं किया गया तो बच्चों को डायलिसिस तक पहुंचने का भी खतरा रहता है.

यह चिंता इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स आगरा और इंडियन सोसायटी आफ पीडियाट्रिक नेफ्रोलाजी की एमजी रोड स्थित होटल में एक दिनी सेमिनार में विशेषज्ञों ने जताई. मुख्य वक्ता इंडियन सोसायटी आफ पीडियाट्रिक नेफ्रोलाजी के सचिव और लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेज दिल्ली में नेफ्रोलाजी डिवीजन के निदेशक डा. अभिजीत साहा ने बताया कि एक से 18 साल तक के बच्चे तमाम कारणों से आईसीयू में भर्ती किए जाते हैं.

इसके पीछे डेंगू, मलेरिया, डायरिया, स्क्रब और लैप्टो स्पायरोसिस बड़े कारण हैं. अधिक पतला मल और उल्टियां करने वाले बच्चों को भी किडनी फेल्योर का 30-40 फीसदी खतरा रहता है. बीमारी एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) स्टेज-3 में पहुंच गई है तो डायलिसिस ही एकमात्र इलाज है.

इसके तहत पांच साल से कम उम्र के बच्चों को पैराटोनियल डायलिसिस और इससे अधिक उम्र के बच्चों के साथ हीमो डायलिसिस के साथ पैराटोनियल की प्रक्रिया अपनाई जाती है. हीमो डायलिसिस से खून की सफाई की जाती है.

बहुत मुश्किल है किडनी ट्रांसप्लांट

बच्चे को उसकी उम्र के बराबर वाले की ही किडनी लगाई जा सकती है. लेकिन भारत में यह संभव नहीं है. अधिकतर मामलों में उसके माता या पिता की किडनी लगाना श्रेष्ठ रहता है. लेकिन यह काम बच्चे की उम्र बढ़ने के बाद ही संभव है. छोटी उम्र के डोनर या किडनी का इंतजाम यहां नहीं है.

 

 

आगरा न्यूज़ डेस्क

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