नीम फ्लेवर का साबुन बनाकर खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी, ऐसे कमाया इंडियन मार्केट से पैसा
बिज़नस न्यूज़ डेस्क, यह उस समय की बात है जब अंग्रेज बंगाल से देश पर शासन किया करते थे। उस दौरान कलकत्ता एक बड़ा बिजनेस हब हुआ करता था। इस कारण आप पाएंगे कि उस समय के प्रत्येक व्यवसाय का कलकत्ता (अब कोलकाता) से कोई न कोई संबंध था। ऐसे में स्वदेशी आंदोलन से भी कई कंपनियां निकलीं। उनमें से कई कंपनियां अभी भी अपना बाजार बनाए हुए हैं। हम आपको मार्गो साबुन के बारे में बता रहे हैं। एक जमाने में इस साबुन को काफी अहमियत दी जाती थी। इसके औषधीय गुणों के कारण यह बाजार में खूब बिकता है। आज भी यह साबुन बाजार में बनता है। आइए जानते हैं इस साबुन का इतिहास।
देसी पनीर को ब्रांड बना दिया
का। सी. दास रसायन विज्ञान के पारखी थे, उन्होंने भी इसी विषय से पढ़ाई की थी। इसी वजह से वह नीम के फायदे जान पाए। वैसे भी नीम के फायदे देश की जनता भी जानती थी। बस फिर क्या था, उन्होंने इस पहचान का सही फायदा उठाया और नीम को साबुन का आकार दे दिया और इस तरह मार्गो साबुन बाजार में आ गया. इसके साथ ही उन्होंने नीम का टूथपेस्ट भी बनाया। इसके अलावा लैवेंडर ड्यू नाम के एक प्रोडक्ट ने भी उस दौरान बाजार में धूम मचाई थी। इसके बाद कंपनी ने अरामस्क साबुन, महाभृंगराज तेल और चेक डिटर्जेंट जैसे अन्य उत्पाद भी बनाए।
क्यों प्रसिद्ध हुआ
इस साबुन कंपनी के मालिक के. सी. दास ने मार्गो साबुन के रेट इस तरह तय किए कि हर वर्ग का आदमी उस उत्पाद को बाजार में खरीद सके। इस वजह से मार्गो पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया। उस जमाने में लोग इस साबुन को हाथोंहाथ खरीदते थे और कुछ ही सालों में कंपनी को तमिलनाडु में भी मैन्युफैक्चरिंग प्लांट खोलना पड़ा। मार्गो 1990 के दशक में साबुनों का क्रेज था। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि 1988 में भारतीय बाजार में इसकी हिस्सेदारी 8 फीसदी से ज्यादा थी।

