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B-2 स्पिरिट बॉम्बर: अमेरिका का वो खतरनाक हथियार, जिससे कांपते हैं दुश्मन, बनाने थे 132, बन पाए सिर्फ 20

B-2 स्पिरिट बॉम्बर: अमेरिका का वो खतरनाक हथियार, जिससे कांपते हैं दुश्मन, बनाने थे 132, बन पाए सिर्फ 20

नई दिल्ली। दुनिया की सबसे ताक़तवर सैन्य ताकत अमेरिका के पास एक ऐसा बॉम्बर है जो अपने आप में एक रहस्य है—न सिर्फ इसकी उड़ान, बल्कि इसकी मौजूदगी भी अक्सर दुनिया से छिपी रहती है। नाम है B-2 स्पिरिट, जिसे स्टील्थ बॉम्बर भी कहा जाता है। यह वो हथियार है जिसे अमेरिका ने अब तक किसी दूसरे देश को बेचा नहीं और जिसकी कीमत इतनी ज़्यादा है कि अमेरिका भी इसे मनचाही संख्या में नहीं बना पाया। ईरान और इजरायल के बीच तनाव की खबरों के बीच चर्चा है कि अमेरिका इस संघर्ष में कूद सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो अमेरिका की पहली पसंद B-2 स्पिरिट बॉम्बर होगा, जो दुश्मन की जमीन में सैकड़ों फीट नीचे बने अयातुल्लाह खामेनेई के बंकर और फोर्डो न्यूक्लियर साइट जैसे ठिकानों को नेस्तनाबूद कर सकता है।

भारत के पास में अमेरिका का 'स्ट्राइक बेस'

जानकारी के मुताबिक, अमेरिका ने डिएगो गार्सिया में अपने बॉम्बर्स को तैनात किया है। यह बेस हिंद महासागर में है और तकनीकी रूप से ब्रिटेन के अधीन है। यहां से ईरान की दूरी करीब 5267 किलोमीटर है। यही वजह है कि अमेरिका ने इस बेस पर पहले से ही चार B-52 बॉम्बर्स भेज दिए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में कहा था कि अगर ईरान ने घुटने नहीं टेके, तो ऐसी बमबारी होगी जो आज तक किसी ने देखी नहीं होगी। अब जब हालात फिर बिगड़ते दिख रहे हैं, तो अमेरिका का ध्यान अपने उसी 'सीक्रेट हथियार' की तरफ जा सकता है—B-2 स्पिरिट।


क्यों है B-2 इतना खास?

B-2 बॉम्बर को Northrop Grumman कंपनी ने तैयार किया है। इसका सबसे बड़ा हथियार है इसका डिज़ाइन। यह एक फ्लाइंग विंग जैसी बनावट वाला बॉम्बर है—ना कोई पूंछ, ना आम विमानों जैसा ढांचा। इसकी बनावट ऐसी है कि रडार तक इसे पकड़ नहीं पाते। यही कारण है कि इसे ‘स्टील्थ बॉम्बर’ कहा जाता है। इसका काम बहुत साफ है—चुपचाप उड़ो, दुश्मन के इलाके में घुसो, टारगेट पर अचूक हमला करो और लौट आओ। रडार से बचने की इसकी क्षमता इसे बेहद खतरनाक बना देती है।

तकनीकी ताकत जो इसे बेजोड़ बनाती है

B-2 स्पिरिट सिर्फ दिखने में अनोखा नहीं, इसके तकनीकी आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं। इसकी लंबाई 69 फीट है, जबकि पंखों की फैलाव 172 फीट तक है। यह बॉम्बर 80,000 पाउंड तक हथियार ले जा सकता है। इसकी उड़ान रेंज करीब 11,000 किलोमीटर है, और अगर हवा में ईंधन भरा जाए, तो यह 19,000 किलोमीटर तक उड़ सकता है। इसकी स्पीड भी कम नहीं है—मैक 0.95, यानी ध्वनि की गति से थोड़ी कम। इससे भी खास बात यह कि इसमें परमाणु हथियार ले जाने और गिराने की क्षमता है। यानी, यह सिर्फ पारंपरिक बमों का ही नहीं, बल्कि अमेरिका के न्यूक्लियर arsenal का भी अहम हिस्सा है।

GBU-57: वो बम जो जमीन के भीतर धमाका करता है

ईरान की फोर्डो न्यूक्लियर फैसिलिटी और सुप्रीम लीडर का ठिकाना जमीन के कई सौ फीट नीचे हैं। इनपर पारंपरिक बमों से हमला कारगर नहीं हो सकता। ऐसे में काम आता है अमेरिका का GBU-57 बम, जिसे "मसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर" (MOP) कहा जाता है। यह बम लगभग 60 मीटर गहराई तक जमीन में घुस सकता है और फिर धमाका करता है। लेकिन इसे दागने के लिए जरूरी है एक ऐसा बॉम्बर जो न सिर्फ भारी बम उठा सके, बल्कि बिना पकड़े दुश्मन की सरहदों में घुस सके—और वही है B-2 स्पिरिट।


B-2 का खर्चा सुनकर चौंक जाएंगे

B-2 बॉम्बर दुनिया का सबसे महंगा बॉम्बर है। एक बॉम्बर की लागत करीब 1 बिलियन डॉलर यानी 8600 करोड़ रुपये है। सिर्फ खरीदने में ही नहीं, इसे उड़ाने, मेंटेनेंस करने और हैंगर में रखने तक पर जबर्दस्त खर्च आता है। अनुमान है कि कुल मिलाकर एक B-2 पर खर्च 2 बिलियन डॉलर तक जा सकता है। इसकी सर्विसिंग कोई आम तकनीशियन नहीं कर सकता—इसके लिए खासतौर पर प्रशिक्षित इंजीनियर और विशेष हेंगर बनाए जाते हैं। यही कारण है कि अमेरिका की योजना थी कि 132 B-2 बॉम्बर बनाए जाएंगे, लेकिन लागत इतनी ज़्यादा निकली कि सिर्फ 21 ही बन पाए। आज की तारीख में सिर्फ 20 ही ऑपरेशन में हैं, क्योंकि एक बॉम्बर एक हादसे में खो चुका है।

दुनिया में किसी के पास नहीं है ये ताकत

B-2 स्पिरिट की खास बात ये भी है कि अमेरिका ने इसे आज तक किसी देश को बेचा नहीं है। ना NATO देशों को, ना ही अपने सबसे करीबी सहयोगियों को। यह अमेरिका के लिए एक रणनीतिक हथियार है, जिसे सिर्फ खास हालातों में ही इस्तेमाल किया जाता है। इसकी तकनीक इतनी संवेदनशील है कि इसकी उड़ान की जानकारी, मिशन डिटेल्स और बेस लोकेशन तक को अक्सर गुप्त रखा जाता है।

क्या ईरान के खिलाफ इसका इस्तेमाल होगा?

मौजूदा हालात में अगर अमेरिका ईरान के खिलाफ किसी सैन्य कार्रवाई का फैसला करता है, तो B-2 स्पिरिट एक अहम किरदार निभा सकता है। खासकर अगर टारगेट ऐसी जगहें हैं जो ज़मीन के भीतर हैं और जिन्हें पारंपरिक बमों से खत्म करना नामुमकिन है। B-2 स्पिरिट चुपचाप, अचूक और गहराई तक हमला करने की काबिलियत रखता है। यही वजह है कि यह बॉम्बर किसी भी सैन्य ऑपरेशन में अमेरिका की पहली पसंद बन जाता है। B-2 स्पिरिट को सिर्फ एक बॉम्बर कहना इसकी ताकत को कम आंकना होगा। यह अमेरिका की सैन्य रणनीति, उसकी तकनीकी बढ़त और वैश्विक दबदबे का प्रतीक है। इसकी हर उड़ान, हर मिशन, हर ऑपरेशन अमेरिका के इरादों का संदेश होता है। शायद यही वजह है कि आज भी जब अमेरिका कोई कड़ा कदम उठाने की बात करता है, तो सबसे पहले B-2 की चर्चा होती है—एक ऐसा बॉम्बर, जिसे देखना शायद मुमकिन न हो, लेकिन जिसका असर महसूस किए बिना कोई नहीं रह सकता।

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