ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म ग्रंथ में कई ऐसी बातों का जिक्र किया गया हैं जो हर किसी के लिए जानना जरूरी हैं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि यमराज को विदुर के रूप में क्यों अवतार लेना पड़ा था, तो आइए जानते हैं। घटना उस वक्त की है जब मैत्रेय से विदुर जी मिले थे तब महात्मा विदुर ने मैत्रेय से पूछा कि आप मुझे बताइए कि मैं कौन हूं। तब मैत्रेय ने विदुर से कहा कि तुम यमराज के अवतार हो और मांडव्य ऋषि के श्राप के कारण तुमको महाभारत काल में एक दासी पुत्र विदुर के रूप में जन्म लेना पड़ा हैं।
एक बार कुछ चोरों ने राजकोश से धन की चोरी कर ली जब राज्य सैनिकों को चोरी का पता चला तो यह चोर की खोज में भागे चोरो का पीछा किया। सैनिकों को अपने पीछे भागता देख चोर घबरा गए। चोर धन के साथ अधिक दूर भाग नहीं सकते थे। इसलिए चोरों ने मार्ग में मिल मांडव्य ऋषि के आश्रम में अपना चोरी का धन छुपा दिया और वहां से यह सब भाग गए।
चोरों का पीछा करते हुए सैनिक मांडव्य ऋषि के आश्रम में आ पहुंचे और मांडव्य ऋषि के आश्रम की तलाशी ली। छानबीन करने के बाद सैनिकों को मांडव्य ऋषि के आश्रम से चोरी का धन मिला। उस वक्त मांडव्य ऋषि अपने ध्यान में थे। राज्य कर्मचारियों की भागदौड़ की आवाज से मांडव्य ऋषि का ध्यान भंग हो गया। राज्य कर्मचारियों ने मांडव्य ऋषि को ही चोर समझ लिया और उन्हें पकड़ कर राजा के पास ले गए। राजा ने मांडव ऋषि को फांसी की सजा सुना दी। मांडव को फांसी देने वाले स्थान पर लाया गया।
मांडव्य ऋषि वहीं पर गायत्री मंत्र का जाप करने लगे। राज्य कर्मचारी जब मांडव्य ऋषि को फासी देते, तो उन्हें फांसी नहीं लगती। राज्य के सभी कर्मचारी सहित राजा भी यह देखकर हैरान हो गए। ऋषि ने कहा मेरे किस पाप का दंड आपने मुझे मृत्युदंड के रूप में दिया। मांडव्य ऋषि के पूछने पर यमराज ने बताया कि बचपन में आप ने तितली को कांटे चुभोए थे जिसकी वजह से आपको मृत्यु दण्ड दिया गया हैं इस पर ऋषि ने कहा बचपन में किया गया पाप पाप नहीं होता हैं क्यों कि बच्चों को यह पता ही नहीं होता हैं कि वो क्या कर रहे हैं तो आप ने मुझे मृत्यु दण्ड दिया हैं इसके लिए मैं आपको शाप देता हूं की आप विदुर रूप में धरती पर जन्म लेंगे।