शादी में दूल्हा क्यों मारता है तोरण? जानें क्या है धार्मिक मान्यता
हिंदू धर्म की कई शादियों में तोरण मारने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। इस प्रथा में दूल्हा, दुल्हन के दरवाजे पर लगे खंभे पर तलवार से वार करता है और फिर दरवाजे के अंदर प्रवेश करता है। भारत के कई राज्यों में विवाह को एक प्रथा माना जाता है। शादी में लटकाए जाने वाले इन तोरणों पर तोते का चिन्ह बनाया जाता है। आखिर तोरण पर तोते का चिन्ह खास तौर पर क्यों बनाया जाता है और यह परंपरा कैसे और क्यों शुरू हुई, यह सवाल मन में जरूर आता है। इस रस्म के पीछे एक पौराणिक कथा कही जाती है।
तोरण मारने की परंपरा कैसे शुरू हुई?
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, तोरण नाम का एक राक्षस था, जो विवाह के समय दुल्हन के घर के दरवाजे पर तोते का रूप धारण करके बैठा रहता था। जब दूल्हा दरवाजे पर आता, तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से विवाह कर लेता। इसके बाद, वह जीवन भर दंपत्ति को परेशान करता।
एक बार एक बहादुर और चतुर राजकुमार को यह रहस्य पता चल गया। विवाह के समय जब वह राजकुमार कन्या के घर में प्रवेश कर रहा था, तो अचानक उसकी नज़र उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत अपनी तलवार से उसे मार डाला और विवाह संपन्न कराया। कहा जाता है कि उसी दिन से तोरण मारने की परंपरा शुरू हुई।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तोरण पर तोता बनाया जाता है।
इस रस्म में, कन्या के घर के द्वार पर एक लकड़ी का तोरण स्थापित किया जाता है, जिस पर एक तोता बना होता है, जिसे बौना राक्षस का प्रतीक माना जाता है। विवाह के समय दूल्हा उस लकड़ी के राक्षस तोते को तलवार से मारने की रस्म पूरी करता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार
कुछ मान्यताओं में, इस तोरण को राक्षसों और विपत्तियों से जोड़ा जाता है और दूल्हे को शिव का प्रतीक माना जाता है। इस प्रथा के माध्यम से, यह माना जाता है कि भगवान शिव विवाह से पहले सभी विपत्तियों का नाश कर रहे हैं।
तोरण की इस प्रथा से कई कहानियाँ और मान्यताएँ जुड़ी हैं। यही कारण है कि विवाह समारोहों में यह प्रथा आज भी जारी है।

