कौन हैं ललिता सखी, श्रीकृष्ण राधा की सखी ललिता के 7 रहस्य जानकर चौंक जाएंगे
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ललिता सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। देवी ललिता राधा रानी की प्रिय सखी थीं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन उनका प्राकट्य हुआ था। ललिता सप्तमी के अगले दिन राधारानी का जन्म हुआ था। इसी कारण ललिता सप्तमी के दूसरे दिन राधा अष्टमी मनाई जाती है।
ऐसा माना जाता है कि देवी ललिता की पूजा करने से राधा रानी और भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं। साथ ही भक्तों की सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। कई स्थानों पर यह भी मान्यता है कि ललिता सखी राधा रानी की परम भक्त गोपी होने के साथ-साथ भगवान कृष्ण की आठ पटरानियों में से एक हैं। राधा-कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति इतनी थी कि उन्होंने अपना पूरा जीवन उनकी भक्ति में समर्पित कर दिया।
प्रधान राधा रानी की सखियों में से एक हैं।
ललिता सखी राधा रानी की आठ प्रमुख सखियों में से एक थीं। वे राधा-कृष्ण की सभी लीलाओं में उनके साथ रहती हैं। इसके साथ ही, वे गोलोक में निवास करती हैं। उनका जन्म स्थान ब्रज के पास ऊँचागाँव में है। राधा रानी की अन्य सखियों में विशाखा, चित्रा, इंदुलेखा, चंपकलता, रंगदेवी, तुंगविद्या और सुदेवी शामिल हैं। ललिता को राधा की सबसे विश्वसनीय और घनिष्ठ सखी माना जाता है, जो हर लीला में उनके साथ रहीं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ललिता का जन्म बरसाना के पास करेहला गाँव में हुआ था और बाद में उनके पिता उन्हें वृंदावन के पास ऊँचागाँव ले गए। वह राधा रानी से बड़ी थीं और उनकी सेवा में पूरी तरह समर्पित थीं। ललिता का रूप हल्के पीले रंग का बताया जाता है और मोर पंख जैसे रंग-बिरंगे वस्त्रों से सुसज्जित होता है।
शास्त्रों में, ललिता को राधा रानी का ही एक रूप माना जाता है। उनकी भक्ति इतनी प्रगाढ़ थी कि स्वयं भगवान शिव ने उन्हें सखीभाव में दीक्षित किया ताकि वे राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाओं में भाग ले सकें। कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाओं में शामिल होने की इच्छा से ललिता सखी का रूप धारण किया था, क्योंकि पुरुष रूप में उनकी लीलाओं में प्रवेश करना संभव नहीं था।
श्री कृष्ण और ललिता सखी का रिश्ता
ललिता सखी का भगवान कृष्ण और राधा रानी के साथ एक गहरा और अनोखा रिश्ता था। वह न केवल राधा की प्रिय सखी थीं, बल्कि भगवान कृष्ण के प्रति उनकी गहरी भक्ति और प्रेम भी था। शास्त्रों के अनुसार, ललिता राधा और कृष्ण की निकुंज लीलाओं की साक्षी थीं और उनकी सेवा में तत्पर रहती थीं। उन्होंने राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाओं के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे उनका मिलन कराना, उनके बीच संदेशवाहक का कार्य करना और उनकी लीलाओं को मधुर बनाना।
ललिता का राधा के प्रति प्रेम इतना गहरा था कि वह हमेशा राधा का पक्ष लेती थीं, यहाँ तक कि कृष्ण के साथ उनके प्रेम-विवाद में भी। श्री कृष्ण भी ललिता की भक्ति और राधा के प्रति उनकी निष्ठा का सम्मान करते थे। शास्त्रों में वर्णित है कि राधा के बाद यदि किसी का सबसे अधिक सम्मान या भय था, तो वह ललिता ही थीं। सूरदास जैसे भक्ति कवियों ने अपनी रचनाओं में ललिता को राधा की सबसे प्रिय सखी के रूप में चित्रित किया है।

