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क्या होता है सूतक काल और क्यों माना जाता अशुभ है? यहां जानिए सबकुछ

हिंदू धर्म में सूतक काल का विशेष महत्व है और प्राचीन काल से लेकर आज तक सूतक काल के नियमों का पालन किया जाता रहा है। ज्योतिषीय और धार्मिक दृष्टि से भी सूतक काल को अशुभ और अशुद्ध माना जाता है। सामान्यतः सूतक काल वह काल होता है जो....
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हिंदू धर्म में सूतक काल का विशेष महत्व है और प्राचीन काल से लेकर आज तक सूतक काल के नियमों का पालन किया जाता रहा है। ज्योतिषीय और धार्मिक दृष्टि से भी सूतक काल को अशुभ और अशुद्ध माना जाता है। सामान्यतः सूतक काल वह काल होता है जो सूर्य या चंद्र ग्रहण से पहले और उसके दौरान माना जाता है।

धार्मिक दृष्टि से, यह वह समय होता है जब भोजन करना, पूजा-पाठ करना, शुभ कार्य करना आदि कई कार्य वर्जित माने जाते हैं। वहीं, ज्योतिष की दृष्टि से भी सूतक काल का ग्रहों और राशियों की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए ज्योतिष में भी इस दौरान सावधान और सतर्क रहने की सलाह दी जाती है।

सूतक काल कब लगेगा, इसकी गणना ग्रहण की तिथि और समय के आधार पर की जाती है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, सूतक काल की गणना करने के लिए सबसे पहले सूर्य और चंद्र ग्रहण की तिथि और समय का पता लगाया जाता है। सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक लग जाता है और ग्रहण समाप्ति तक मान्य रहता है। इसी प्रकार चंद्र ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक काल शुरू होता है और ग्रहण समाप्ति तक रहता है। बता दें कि ग्रहण समाप्त होते ही सूतक की अवधि भी स्वतः समाप्त हो जाती है।

सूतक क्यों महत्वपूर्ण है?

शास्त्रों में ग्रहण काल को अत्यंत अशुभ माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस समय देवता भी कष्ट में रहते हैं। यही कारण है कि ग्रहण काल से पहले ही अर्थात सूतक लगते ही मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और पूजा-पाठ वर्जित कर दिया जाता है। लेकिन प्रश्न यह है कि सूतक के नियमों का पालन करना क्यों आवश्यक है और इसका पालन न करने पर इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। आइए जानते हैं-

सूतक काल का पालन व्यक्ति की धार्मिक पवित्रता बनाए रखने के लिए किया जाता है। सूतक काल का समय ध्यान, मौन, आत्मचिंतन के लिए उपयुक्त माना जाता है। धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टि से सूतक के नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण माना जाता है। सूतक के नियमों का पालन करने से नकारात्मक ऊर्जा और संक्रमण से भी बचाव होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के दौरान सूर्य और चंद्रमा की किरणों में परिवर्तन होता है, जिससे पृथ्वी पर जीवाणुओं की वृद्धि होती है। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही ग्रहण के दौरान खाने-पीने की चीज़ों में तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा रही है। साथ ही, इस अवधि में भोजन पकाया और खाया जाता है।

गर्भवती महिलाओं को भी ग्रहण के दौरान कई नियमों का पालन करना पड़ता है, ताकि गर्भ में पल रहे शिशु को कोई नुकसान न पहुँचे। सूतक काल के नियमों का पालन करने से अशुद्धियाँ दूर रहती हैं। इन नियमों का पालन हमें प्रकृति, समय और ऊर्जा के साथ सामंजस्य बिठाना सिखाता है और हमें समस्याओं से दूर रखता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न: सूतक में भोजन करने से क्या होता है?

उत्तर: ग्रहण के दौरान सूर्य या चंद्रमा की किरणों में परिवर्तन के कारण भोजन दूषित हो जाता है। इसलिए इस समय भोजन करना वर्जित है।

प्रश्न: क्या ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ किया जा सकता है?

उत्तर: नहीं, जैसे ही ग्रहण का सुतक लगता है, पूजा-पार पर लग जाता है।

प्रश्न: क्या बच्चों, बीमारों और बुजुर्गों के लिए सूतक का पालन करना ज़रूरी है?

उत्तर: नहीं, बहुत छोटे बच्चों, बीमारों और बुजुर्गों के लिए सूतक के सख्त नियम नहीं हैं।

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