"Trayodashi Shradh 2025" आखिर क्यों खास है त्रयोदशी श्राद्ध? इस तरह करें तर्पण, नाराज पूर्वजों की मिलेगी कृपा
श्राद्ध पक्ष में हर तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध भी इन्हीं में से एक है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जिनका निधन त्रयोदशी तिथि को हुआ हो, या फिर यह अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए बच्चों और साधु-संतों के लिए भी किया जाता है। त्रयोदशी श्राद्ध (Trayodashi Shradh 2025) का दिन पितरों के तर्पण और उनसे जुड़े अन्य कर्मकांडों के लिए विशेष माना जाता है, तो आइए जानते हैं इस तिथि से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें, जो इस प्रकार हैं -
त्रयोदशी श्राद्ध क्यों महत्वपूर्ण है?
त्रयोदशी श्राद्ध उन बच्चों और संन्यासियों के लिए भी किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने से उन्हें मुक्ति मिलती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। इसके अलावा, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, त्रयोदशी श्राद्ध करने से पितृ दोष भी दूर होता है और अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष है, तो इस श्राद्ध को करने से दोष का प्रभाव कम हो जाता है।
तर्पण कैसे करें?
श्राद्ध का समय - त्रयोदशी श्राद्ध कुटुंब, रोहिणी या मध्यकाल में करना सबसे शुभ माना जाता है। इस समय किया गया पिंडदान सीधे पितरों तक पहुँचता है।
तर्पण विधि - इस दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पितरों के लिए भोजन तैयार करें, जिसमें खीर, पूरी, सब्जी और ब्राह्मणों को खिलाई जाने वाली सभी चीजें शामिल हों।
पिंडदान - श्राद्ध कर्म में पिंड बनाकर अर्पित करें। ये पिंड चावल, जौ और काले तिल से बनाए जाते हैं। पितरों को पिंड अर्पित करने के बाद उन्हें जल से तर्पण करें।
ब्राह्मण को भोजन कराना - श्राद्ध के बाद ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएँ और उन्हें दक्षिणा दें। भोजन में माता-पिता को पसंद आने वाली वस्तुएँ अवश्य शामिल करें।
उन्हें भी भोजन कराएँ - श्राद्ध के भोजन का एक भाग कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी निकालना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ये पितरों के प्रतीक हैं और इन्हें भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है।
पूजा मंत्र
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।
ॐ द्वताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।
ॐ अद्या-भूताय विद्महे सर्व-सेवा दीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
गोत्रे अस्मत्पिता (पित्रों का नाम) शर्मा वसुरूपत् त्रिप्यतामिदम तिलोदकम्
गंगा जलम् या तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

