महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पढ़िए कनकधारा स्तोत्र, धन धान्य की नहीं होगी कमी
ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में पूजा पाठ के साथ साथ मंत्र और स्तोत्र को भी विशेष माना जाता हैं वही नवरात्रि का पावन पर्व मनाया जा रहा हैं ऐसे में मां लक्ष्मी की पूजा करना और उनके मंत्र और स्तोत्र का पाठ करना भी फलदायी माना जाता हैं
वही नवरात्रि के दिनों में कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना लाभकारी होता हैं ऐसा करने से धन धान्य की कमी नहीं होती हैं और जीवन में सुख शांति बनी रहती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं मां लक्ष्मी का कनकधारा स्त्रोत पाठ, तो आइए जानते हैं।
श्री कनक धारा स्तोत्रम्
(आदि गुरु शंकराचार्य विरचित)
डॉ मृदुल कीर्ति
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥
जय जयति जय हरि ! अंग तो, आनंद भूषण शोभिता,
यहि रूप लखि हरि का मनोहर, लक्ष्मी श्री! अस मोहिता,
जस भृंग मोहित मुकुल पुंज, तमाल के जो अधखिले ,
तस ही कृपा मम मंगलम, विष्णु प्रिया से नित मिले।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥
पुनि-पुनि निहारे मुग्ध, चितवन, मुख मुरारे! नीरजा,
निरखतीं संकोच से, सिद्धि, पयोदधि जन्मजा ,
मधु मृच्छिका जस नील नीरज, के मधुर रस को गहे,
तस वही हरिवल्ल्भी शुभ, दृष्टि, धन वर्षित महे । ----2
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्_
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्_
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥
अर्द्ध निमलित नयन से, अनिमेष तकतीं मुकुंद को,
सकुचात , मन मुदिता रमा, श्री परम आनंदकंद को।
नंद आनन, बंद नयना, भुजग शयनम नाथ श्री,
हे पद्मिनी! देना मुझे, धन , अनवरत ऐश्वर्य श्री
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्_
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥
कौस्तुभं आभूषणं, मणि हार नीलम शोभितं,
त्रैलोक्य स्वामी, मधु विजित, हे रमापति! प्रिय वरं
प्रेम पूरित, भाव भावित, श्री हरि ! को भगवती,
कमलालया, देना यथा, धन-धान्य मुझको सम्पती।-------4
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥
शुभ श्याम वक्षस्थल विशाला, पद्मिनी जस दामिनी,
घन तिमिर में तड़ित मानहुं, शोभिता पद्मासिनी ,
हे! जगतमातु ! महीयसी, हे! वर महिम भार्गव सुता,
हे! शुभ प्रदा, देना मुझे, धन, अनवरत श्री अच्युता
वरदानमय, आशीषमय, कृपारूप शुभांगिनी
रमा की सामर्थ्य मधुजित, की बने वामांगिनी .
करुणामयी ,प्रेमस्वरूपा, स्नेहविगलित दृष्टि जो
से करो प्लावित मुझे, दो, याचना मां! अभीष्ट जो।
जय जयति जय मां भगवती, की निमिष करुणा दृष्टि से,
इन्द्र भी देवेश 'मधुजित', हों दया की वृष्टि से
आनंद मय आनंदरूपा, सिद्धि वाची यशस्विनी
नील वारिज नयन से, मुझे देख मां! पद्मासिनी .
स्वर्ग पद दुर्लभ, सुलभ, मां की कृपा शुभ दृष्टि से,
पा सकें, इष्टा विशिष्टा, निमिष करुणा वृष्टि से,
दीप्तिमय शुभ दृष्टि दो, जो पूर्ण विकसित कमल सी,
सर्व मंगल,काम्य दात्री , मंगला मां! विमल सी।
द्रविण अम्बु धार की, मुझ दीन हित वर्षा करो ,
विहग शिशु चातक अकिंचन, तृषित, मां तृष्णा हरो,
पवन सी विस्तृत दयालु, अघ, हरो नारायणी ,
सघन घन सम नयन चारु , मां! कृपा कल्यायणी।९
ज्ञानेश्वरी, हे महाकाली!, तुम गरुणध्वज की प्रिया,
सृष्टि, स्थिति, प्रलय काले, संस्थिता, संसृति क्रिया।
भगवती! त्रैलोक्य पूज्या, आदि मां परमेश्वरी,
मम नमन उस जगत मां को, साधना सिद्धेश्वरी . १०
कर्मफलशुभ दायिनी, वेदोक्त मां! कोटिक नमन,
रमणीय गुण युक्ता रति!, हे शुभ्र! मां ! कोटिक नमन ,
शतपत्र के कमलालये , हे शक्ति! मां कोटिक नमन ,
विष्णु प्रिया हरि वल्ल्भा, हे पुष्टि ! मां कोटिक नमन। --------------------११
पूर्ण विकसित कमल सम, सौंदर्य , मां! कोटिक नमन,
वाची, पयोदधि जन्मजा, सुरभि, मां! कोटिक नमन,
अमिय सोम सहोदराया, विभा मां ! कोटिक नमन,
श्री नारायण वल्ल्भा, श्री निधि मां! कोटिक नमन। -----------------१२
कनक पद्मासिनी हिरण्या, स्वधा मां! कोटिक नमन
नायिका ब्रह्माण्ड सर्वं, प्रकृति मां ! कोटिक नमन,
दयामय देवादि पर भी, आद्या मां! कोटिक नमन,
शारंग आयुध वल्ल्भाये , शुभा मां! कोटिक नमन, -----------------१३
भृगु आत्मजा ,देवी सुकन्या, जया मां! कोटिक नमन,
श्री विष्णु के वक्षस्थले , रमति मां! कोटिक नमन,
कमलजा कमलालयै, कमला मां ! कोटिक नमन,
श्री दामोदर वल्लभा, देवी मां ! कोटिक नमन.--------------१४
कमल की कांति है कमला, कान्ति मां ,कोटिक नमन,
भूमि और , भू मातु भी, हे भूमि मां! कोटिक नमन,
देवताओं से भी पूजित , श्रेय मां ! कोटिक नमन ,
नन्द आत्मज वल्ल्भायै , आद्या माँ! कोटिक नमन.------------१५
बहुल धन-संपत्ति दात्री , इन्द्रियों के सुख सभी,
हे सरोजाक्षी ! प्रदात्री , राज को साम्राज्य भी,
द्वन्द दुरितानि त्वरित , माँ लक्ष्मी! सारे हरो,
हे! मातु श्री वन्दन नमन , स्वीकार माँ मेरे करो। -------------------१६
जो कटाक्ष उपासना के, विधि विधान से युक्त हो,
श्री, सम्पदा, ऐश्वर्य,धन से, भक्त वह संयुक्त हो,
कोटि वंदन नमन पुनि-पुनि, मन वचन और कर्म से,
श्री मुरारी की प्रिया श्री, लक्ष्मी को, हिय मर्म से। -----------------------१७
पद्मिनी पद्मासिनी, शुभ पद्म हस्ते पावनी,
धवल वस्त्रा, शुभ्र सुरभित माल मलयज भावनी,
भगवती! हरिवल्लभा , मन मुदित आनंदित करे,
त्रिभुवन विभूति श्रीमयी , वह माँ मुझे प्रमुदित करे। ----------------------१८
कनक कुंभ से अष्ट कुंजर, गंगाजल दिशि पावनी,
करें प्रक्षालन ,जो गंगा, रमा हित स्वर्ग वाहिनी,
प्रातर्नमामि जगत जननी, श्रीधरः , गृहस्वामिनी
जलधि तनया, अमिय दात्री, लक्ष्मी, स्वस्ति , पद्मिनी। ----------------१९
कमल नयनं वल्लभे , हे! ,कमल , हे करुणामयी,
अवलोक मेरी ओर किंचित, मातु श्री ममतामयी।
मैं दींन से भी दींन, माँ!, तेरी दया का पात्र हूँ ,
अति-अति प्रथम करना दया, माँ! दींन हूँ अति आर्त हूँ ---------------२०
जगदीश्वरी ब्रह्माण्ड की, रक्षा नियंत्रण कर रहीं,
कल्याण रूपा, कमल नयना, सृष्टि संचालक मही
दारिद्र्य भय से आप्त हिय, शरण में हूँ आपकी,
दया दृष्टि अनवरत माँ!, चाह तेरे प्रताप की। -------------------------२१