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जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ी वो बातें जो सैकड़ों साल से बनी हुई हैं रहस्य!

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भारत के पूर्वी राज्य उड़ीसा (अब ओडिशा) के समुद्र तटीय शहर पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर न केवल हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है, बल्कि यह भक्ति, आस्था और संस्कृति का जीवंत प्रतीक भी है। यह पवित्र धाम भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु के अवतार) को समर्पित है, जिनके साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी पूजित होते हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां भगवान की मूर्तियाँ लकड़ी की बनी होती हैं, जिन्हें कुछ वर्षों बाद विशेष अनुष्ठान के तहत बदला जाता है — जिसे नवकलेवर कहा जाता है।

मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था। मंदिर की वास्तुकला कलिंग शैली में बनी है, जो इसकी भव्यता और अद्भुत शिल्पकला को दर्शाती है। 65 मीटर ऊँचा यह मंदिर एक ऊँचे प्लेटफॉर्म पर स्थित है और इसके चारों ओर ऊंची दीवारें हैं जिन्हें मेघनाद परिक्रमा कहा जाता है।

मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ लकड़ी की बनी होती हैं, जो पूरे भारत में अद्वितीय हैं। हर 12 से 19 साल में इन मूर्तियों को नए नीम के पवित्र वृक्षों से बनाकर स्थापित किया जाता है, जिसे बड़ी श्रद्धा से नवकलेवर पर्व के रूप में मनाया जाता है।

विश्वविख्यात रथयात्रा

पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा विश्व की सबसे प्रसिद्ध धार्मिक यात्राओं में से एक है। हर वर्ष जून-जुलाई के महीने में आयोजित यह यात्रा करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विशाल रथों में सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा लगभग 3 किलोमीटर लंबी होती है और लाखों भक्त इस रथ को खींचने के लिए उमड़ पड़ते हैं। मान्यता है कि रथ खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रसोई और प्रसाद की अद्भुत परंपरा

जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी मंदिर रसोई मानी जाती है, जहां हर दिन लाखों श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है। यहाँ महाप्रसाद के रूप में जो भोजन तैयार होता है, वह बिना किसी गैस या बिजली के पारंपरिक लकड़ी की आग पर पकाया जाता है। एक और चमत्कार यह है कि जब भी प्रसाद बनता है, वह कभी भी कम नहीं पड़ता — चाहे भक्तों की संख्या लाखों में क्यों न हो।

मंदिर से जुड़े चमत्कार

जगन्नाथ मंदिर से कई रहस्यमयी तथ्य भी जुड़े हुए हैं। जैसे मंदिर के ऊपर लहराता ध्वज हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। मंदिर के शिखर पर चढ़कर रोज़ पुजारी द्वारा ध्वज बदला जाता है — और यह परंपरा हजारों वर्षों से बिना रुके चली आ रही है।

निष्कर्ष

जगन्नाथ पुरी सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और भक्ति का अद्भुत संगम है। यह धाम हर भक्त के लिए न केवल मोक्ष का द्वार है, बल्कि आत्मिक शांति, सांस्कृतिक गौरव और आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत भी है। पुरी यात्रा हर हिंदू के जीवन का एक अनिवार्य और अलौकिक अनुभव माना जाता है।

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