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संसार में रहते हुए भी निर्लिप्त रहना ही है शिवत्व, जानें कैसे ?

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शिवत्व कोई साधारण विचार नहीं, बल्कि जीवन की एक ऐसी दिव्य अवस्था है, जहां व्यक्ति संसार के बीच रहकर भी उससे बंधता नहीं। यह न तो पलायन है, न ही उपेक्षा, बल्कि पूर्ण समर्पण और विवेक के साथ जीवन को जीने की गहन साधना है। भगवान शिव का सम्पूर्ण जीवन इसी शिवत्व का जीवंत उदाहरण है। वे संसार में रहकर भी उससे परे हैं — नित्य समत्व में स्थित, करुणा से परिपूर्ण और विवेक से संचालित।

हिमालय की बर्फीली चोटियों पर स्थित कैलाश पर्वत पर विराजमान शिव, एक ऐसे तपस्वी योगी हैं, जो भस्म से अलंकृत हैं। उनके जटाओं से बहती मां गंगा, सिर पर चंद्रमा और शरीर पर नाग, ये सभी प्रतीक हैं उस ऊर्जा के जो प्रकृति और ब्रह्मांड से समरसता का संदेश देते हैं। उनके त्रिशूल में सृजन, पालन और संहार तीनों शक्तियां समाहित हैं। वे कोई मिथक नहीं, बल्कि चेतना के उच्चतम शिखर हैं।

शिवत्व का अर्थ है – संसार को पूर्णतः स्वीकार करना, उसमें भाग लेना, किन्तु उसमें लिप्त हुए बिना। यही कारण है कि भगवान शिव गृहस्थ जीवन जीते हैं, माता पार्वती के साथ उनका पारिवारिक संबंध है, उनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं — लेकिन फिर भी वे विरक्त हैं, मुक्त हैं। उनका वैराग्य संसार से भागने का नहीं, बल्कि उसमें रहते हुए आत्मस्थित रहने का है।

शिवत्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में संतुलन कैसे बनाए रखें। जब चारों ओर बाहरी शोर, संघर्ष और अपेक्षाओं का बोझ हो, तब भीतर की शांति और स्थायित्व कैसे साधा जाए। यही शिव का मार्ग है। वृक्षों की तरह देना, नदियों की तरह बहना और आकाश की तरह सब कुछ समेटकर भी मौन में स्थित रहना – यही तो शिवत्व का स्वरूप है।

आज के समय में जब मानव जीवन दौड़-भाग और अनिश्चितताओं से भरा हुआ है, शिवत्व हमें अंदर की शांति से जोड़ता है। यह कोई बाहरी शक्ति नहीं, बल्कि हमारे भीतर विद्यमान दिव्य चैतन्य है, जो हमें जागृत करता है, स्थिर करता है।

शिव तत्व को शब्दों में बाँधना कठिन है, क्योंकि यह एक अनुभूति है। इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। शिव तत्व हमें विरक्ति नहीं, बल्कि जगत के प्रति करुणा और समर्पण का संदेश देता है। शिव ही सृष्टि हैं, शिव ही जीवन की धड़कन हैं। उनसे बाहर निकलना संभव नहीं, क्योंकि वे ही ‘शून्य’ हैं और वे ही ‘अनंत’ भी।

इसलिए, शिवत्व को अपनाना मतलब है – हर परिस्थिति में समत्व बनाए रखना, कर्म करते हुए भी परिणाम से ऊपर उठना, और प्रेम, करुणा व विवेक से जीवन को आलोकित करना। यही है शिव का संदेश – भीतर के शिव को जागृत करो, वही तुम्हें सच्चे अर्थों में मुक्त करेगा।

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