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क्या बिस्तर पर बैठकर कर सकते हैं भगवान का नाम जप? भक्त के सवाल का महाराज ने दिया ये जवाब

भारत की संत परंपरा में संत-महात्माओं की वाणी सदियों से समाज का मार्गदर्शन करती आई है। इन्हीं संतों में एक प्रमुख नाम है प्रेमानंद जी महाराज का, जिनकी सरल भाषा, सहज व्याख्या और गहन आध्यात्मिक ज्ञान आज लाखों भक्तों को प्रभावित कर रहा....
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भारत की संत परंपरा में संत-महात्माओं की वाणी सदियों से समाज का मार्गदर्शन करती आई है। इन्हीं संतों में एक प्रमुख नाम है प्रेमानंद जी महाराज का, जिनकी सरल भाषा, सहज व्याख्या और गहन आध्यात्मिक ज्ञान आज लाखों भक्तों को प्रभावित कर रहा है। हाल ही में एक सत्संग के दौरान जब एक भक्त ने उनसे पूछा कि “क्या नाम जप बिस्तर पर बैठकर किया जा सकता है?”, तो महाराज जी ने इस पर बहुत ही सहज लेकिन गहन उत्तर दिया।

नाम जप बनाम गुरु मंत्र

प्रेमानंद महाराज ने समझाया कि नाम जप और गुरु मंत्र में गहरा अंतर है।

  • नाम जप: भगवान का नाम इतना पवित्र है कि उसे किसी भी स्थिति और किसी भी स्थान पर जपा जा सकता है। चाहे आप बिस्तर पर बैठे हों, यात्रा कर रहे हों, काम कर रहे हों, या यहां तक कि शौचालय में हों, भगवान का नाम जपने पर कोई रोक नहीं है। महाराज जी के अनुसार, ईश्वर का नाम हर जगह पावन होता है।

  • गुरु मंत्र: इसके विपरीत, गुरु मंत्र के जाप के लिए शुद्धता और अनुशासन आवश्यक है। जिस बिस्तर पर गृहस्थ जीवन का प्रयोग होता है, वहां गुरु मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अपवित्र स्थानों, जैसे शौचालय आदि में गुरु मंत्र का उच्चारण वर्जित है। गुरु मंत्र हमेशा स्वच्छ और पवित्र स्थान पर ही करना चाहिए।

नाम जप की सरलता और महत्व

प्रेमानंद महाराज के उत्तर से यह स्पष्ट होता है कि भगवान का नाम जपना अत्यंत सरल साधना है। इसके लिए किसी विशेष आसन, विधि या स्थान की आवश्यकता नहीं है। भक्त किसी भी परिस्थिति में नाम जप कर सकते हैं और भगवान से जुड़ सकते हैं। महाराज जी ने यह भी कहा कि नाम जप की सबसे बड़ी शक्ति भक्ति और श्रद्धा में निहित है। यदि मन में भगवान के प्रति सच्चा प्रेम है, तो नाम जप का फल अवश्य प्राप्त होगा, चाहे आप कहीं भी और किसी भी स्थिति में क्यों न हों।

गुरु मंत्र का अनुशासन

गुरु मंत्र को लेकर प्रेमानंद महाराज ने भक्तों को यह स्पष्ट संदेश दिया कि यह एक अत्यंत पवित्र साधना है। इसे अपवित्र स्थानों या अनुचित परिस्थितियों में नहीं करना चाहिए। गुरु मंत्र का जाप तभी पूर्ण फलदायी होता है जब इसे स्वच्छ मन, शुद्ध वातावरण और एकाग्रचित्त होकर किया जाए। प्रेमानंद महाराज का यह संदेश हमें सिखाता है कि भगवान का नाम जपने में कोई बंधन नहीं है—यह हर स्थिति और हर स्थान में संभव है। वहीं, गुरु मंत्र का जाप अनुशासन और शुद्धता के साथ करना आवश्यक है। इस प्रकार उनका यह उपदेश आधुनिक जीवनशैली में भी आध्यात्मिक साधना को सरल और सहज बनाता है।

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